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चांदनी भीतर की
ब्राह्मण परंपरा अपनाने में बहुत उदार रही है। यह इन शताब्दियों की घटना नहीं है, किन्तु ऐतिहासिक तथ्य है। हर्मन जेकोबी आदि पाश्चात्य विद्वानों ने भी यह स्वीकार किया है--वैदिक परंपरा बहुत उदार रही है और उसने बहुत सारे दूसरों के तत्त्वों को अपना लिया।
आज श्रमण और ब्राह्मण--दोनों परंपराओं का संगम हो गया। वर्तमान में शुद्ध रूप में न किसी को श्रमण परंपरा कहा जा सकता है और न किसी को ब्राह्मण परंपरा। दोनों में तत्त्वों का इतना मिश्रण है कि पृथक्करण करना आसान नहीं है। बहुत गहरे अध्ययन के बाद ही दोनों परंपराओं में पृथक्ता के बिन्दुओं का उद्घाटन संभव बन सकता है। राजाओं की परंपरा
आत्मविद्या के अधिकारी थे क्षत्रिय, इसका एक साक्ष्य है उत्तराध्ययन का अठारहवां अध्ययन । इसमें क्षत्रिय राजाओं की एक लंबी परंपरा का वर्णन है। प्रायः शासक क्षत्रिय होते रहे हैं। जो क्षत्रिय शासक मुनि बने हैं, उनकी एक प्रलंब श्रृंखला जैन परंपरा में है। उत्तराध्ययन में दो प्रकार के राजाओं का इतिहास मिलता है। कुछ वे हैं, जो प्राग ऐतिहासिक काल में हुए हैं और कुछ वे हैं, जो ऐतिहासिक हैं। भरत, सगर, सनत्कुमार आदि प्रागैतिहासिक हैं। राजा दशार्णभद्र, उदायन आदि ऐतिहासिक
१. राजा संजय
१०. चक्रवर्ती जय २. चक्रवर्ती भरत
११. राजा द्विमुख ३. चक्रवर्ती सगर
१२. राजा दशार्णभद्र ४. चकवर्ती मघवा
१३. राजा करकुण्डु ५. चक्रवर्ती सनत्कुमार १४. राजा नमि ६. चक्रवर्ती शांतिनाथ १५. राजा नग्गति ७. राजा कुन्थु
१६. राजा उद्रायण ८. चक्रवर्ती महापद्म १७. काशीराज
६. चक्रवर्ती हरिषेण जात था जीवन का रहस्य
ये सारे राजा अपने विशाल साम्राज्य को छोड़कर मुनि बने। राज्य का संचालन किया, उसे त्यागा और मुनि बन गये। ऐसा लगता है प्राचीन काल में एक जीवन शैली विकसित रही है। यह रहस्य ज्ञात रहा है-कैसे जीना चाहिए ? कैसे मरन चाहिए ? वर्तमान स्थिति को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि आज का आदर्म
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