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________________ राजर्षियों की परंपरा राजा प्रवाहण बोले-प्रियवर ! आज तक इस विद्या पर क्षत्रियों का अधिकार रहा है। आज पहली बार यह विद्या मैं तुम्हें बता रहा हूं। यह छांदोग्य उपनिषद् की घटना है। ऐसी ही घटना का उल्लेख बृहदारण्यक उपनिषद् में मिलता है। उसमें राजा प्रवाहण आरण्यक से कहता है--इससे पूर्व यह विद्या किसी ब्राह्मण के पास नहीं रही है। आज पहली बार मैं तुम्हें यह विद्या बताऊंगा। उपनिषदों को पढ़ने वाला व्यक्ति इस बात को बहुत सरलता से जान सकता है-आत्मविद्या पर एक मात्र क्षत्रियों का अधिकार रहा है। क्षत्रियों ने ब्राह्मणों को यह विद्या सिखलाई। इस सच्चाई को पुष्ट करने वाले अनेक प्रमाण मिलते हैं। आत्मविया की परंपरा : अग्निविद्या की परंपरा दो परंपराएं स्पष्ट रूप से सामने आती हैं। एक परंपरा थी--आत्मविद्या की परंपरा, क्षत्रियों की परंपरा । जैन आगमों में कहा गया--तीर्थकर क्षत्रिय होता है। इस कथन में एक रहस्य छिपा है। क्षत्रिय का अर्थ क्षत्रिय जाति नहीं, क्षत्रिय की परंपरा । क्षत्रिय परंपरा का तात्पर्य है-आत्मविद्या का ज्ञाता। जो आत्मविद्या को जानता है, वही तीर्थकर होता है। जो आत्मविद्या को नहीं जानता, वह जैन परंपरा का, ऋषभ या काश्यप की परंपरा का तीर्थकर नहीं हो सकता। दूसरी परंपरा थी अग्निविद्या की परंपरा, यज्ञ की परंपरा। उस पर एक मात्र ब्राह्मणों का अधिकार रहा। भविष्य में दोनों परंपराओं का मिलन हो गया। जो आत्मविद्या की परंपरा क्षत्रियों में थी, वह ब्राह्मणों में चली गई। अग्निविधा को जैनों ने अपना लिया। उपनिषद् और श्रमण परंपरा __ अध्ययन करने वाले व्यक्ति के ध्यान में यह रहना चाहिए--जितने उपनिषद् हैं, वे आज वैदिक परंपरा से जुड़ गए हैं, किन्तु सारे उपनिषद् वैदिक परंपरा के नहीं हैं, बहुत सारे उपनिषद् श्रमण परंपरा के भी हैं। कुछ ऐसा योग बना, श्रमण परंपरा के अनेक संप्रदाय नष्ट हो गए | नष्ट होने के बाद जो धन बचता है, उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं रहता। जहां कोई उत्तराधिकारी नहीं होता वहां धन को कोई भी अपने अधिकार में ले लेता है। श्रमण परंपरा के उपनिषदों को वैदिक परंपरा ने अपने अधिकार में ले लिया और वे उपनिषद् भी वैदिक परंपरा के माने जाने लगे। वस्तुतः अनेक उपनिषदों में वैदिक परंपरा के प्रतिकूल तत्त्व बहुत हैं। उपनिषदों में यज्ञों का खण्डन किया गया है, वेदों का खण्डन किया गया है। यदि उपनिषद् वैदिक परंपरा से जुड़े होते तो उनमें ये बातें कैसे लिखी जाती ? इससे यह स्पष्ट होता है-उपनिषद् किसी अन्य परंपरा के रहे हैं। किन्तु कालान्तर में उनको स्वीकार कर लिया गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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