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चांदनी भीतर की
पूछा-तुम्हारे पिता ने तुम्हें क्या पढ़ाया है ?
श्वेतकेतु-महाराज ! मुझे सब विद्याओं में निष्णात बनाया है। कुमार ! बताओ, मरने के बाद प्रजा कहां जाती है ? महाराज ! मैं यह नहीं जानता। मुझे यह नहीं बताया गया । यह प्रजा कहां से आती है? कैसे आती है ? महाराज ! इसका भी मुझे पता नहीं है ?
देवयान और पितृयान के मार्ग अलग कहां होते हैं ? पहले ये साथ-साथ चलते हैं। आगे जाकर कहां अलग हो जाते हैं ?
इस प्रश्न का उत्तर भी मुझे ज्ञात नहीं है। पितृलोक मरता क्यों नहीं है ? यह भी मैं नहीं जानता ।
पाँचवीं आहुति के हवन करने पर आप, सोम, रस आदि पुरुष की संज्ञा को कैसे प्राप्त होते हैं ? क्या तुम्हें इनका ज्ञान है ?
नहीं।
कुमार ! तुम्हारे पिता ने तुम्हें क्या सिखाया ? तुम कहते हो-मैं शिक्षित हूं, शिक्षा को उपलब्ध कर चुका हूं। जब तुम इन बातों को नहीं जानते तब तुमने कैसी शिक्षा पायी है ?
आज के किसी भी विद्यार्थी से ये प्रश्न पूछ लिए जाए तो क्या वह उत्तर दे पाएगा ? जो स्नातक हैं, ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट हैं, डाक्टर या वकील हैं, उनसे यह पूछा जाए-बताइए ! प्रजा कहां से आती है ? प्रजा कहां चली जाती है? कैसे चली जाती है ? क्या वे इन प्रश्नों को समाहित कर पाएंगे ? आत्मविद्या
कुमार श्वेतकेतु सीधा अपने पिता के पास आया। उसने पिता से कहा--पिताजी! आप कहते हैं-आपने मुझे सारी विद्याएं पढ़ा दी। आपने सारी विद्याएं कहां पढ़ाई हैं ? आज मुझे कितनी लज्जास्पद स्थिति का सामना करना पड़ा। राजा प्रवाहण ने मुझसे पांच प्रश्न पूछे। मैं एक भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे सका। मेरे लिए यह कितनी लज्जा की बात है ?
पिता गौतम ने श्वेतकेतु से कहा--पुत्र ! इस विद्या पर ब्राह्मणों का अधिकार नहीं है। इस विद्या को क्षत्रिय लोग ही जानते हैं।
गौतम स्वयं राजा प्रवाहण के पास आए। गौतम ने कहा--राजन् ! मैं कुछ प्रश्न लेकर आया हूं, आप इन्हें समाहित करें।
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