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जिन शासन : २
चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्डियो।
संति संतिकरे लोए, पत्तो गई मणुत्तरं । इतना बड़ा ट्रैक्विलाइजर है यह श्लोक कि भयंकर अनिद्रा के रोगी को भी नींद आ जाए। हम ध्वनि को, ध्वनि के चमत्कारों को भूल गए । हजारों दवाइयां जो काम नहीं कर सकतीं वह काम एक मंत्र का उच्चारण कर सकता है। हम अपनी दृष्टि को बदलें, उसे सम्यक् करें और सोचें । जिस महामंत्र का हम दिन-रात प्रयोग करते हैं और ‘एसो पंच णमोक्कारो, सव्व पाव पणासणो' बोलते हैं यह मंत्र सब पापों का नाश करने वाला है तो बीमारी फिर कैसे बच जाएगी । सोचते जा रहे हैं, समझ नहीं पा रहे हैं, आस्था का निर्माण नहीं हो रहा है। आस्था का अनुबन्ध करें और दृष्टि को सम्यक् करें तो मुझे लगता है कि जिनवाणी परम औषधि है हमारे दुःखों को मिटाने की।
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