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जिन शास्त्र : १
श्रमण सूत्र का पहला प्रकरण है-'मंगल' और दूसरा प्रकरण है.---'जिन शासन' । शासन हर व्यक्ति के लिए जरूरी होता है। कोई भी व्यक्ति अकेला जीवन नहीं जी सकता । वह सामूहिक जीवन जीता है, समाज का जीवन जीता है और जो समाज का जीवन जीता है उसके लिए अनुशासन जरूरी है । अनुशासन की अपनी समस्या है। इतना प्रयत्न आज राजनैतिक और सामाजिक स्तर पर चल रहा है अनुशासन की प्रतिस्थापना के लिए, पर अनुशासन नहीं आ रहा है । इस प्रश्न का यदि हल सोचा जाए कि इतना प्रयत्न करने के बाद भी अनुशासन क्यों नहीं आ रहा है ? खराबी कहां है? क्या कारण है कि अनुशासन नहीं आ रहा है ? तो मुझे लगता है, समस्या यह है कि बेटा जन्मा ही नहीं, पर चिन्ता हो रही है कि वह गोरा है या काला? तर्कशास्त्र का वाक्य है—'न हि वन्ध्यापुत्र: गौरो वा कालो वा विचार्यते ।' दो-तीन आदमी बैठे थे। बातचीत होने लगी कि बांझ का बेटा गोरा है या काला? एक समझदार और अनुभवी आदमी उधर से गुजरा । उनकी बातें सुनी और बोला-यह क्या पागलपन की बात कर रहे हो? बांझ के बेटा होता ही नहीं तो उसके गोरे या काले होने की तकरार क्यों कर रहे
हो?
____ जो बात बाद में सोचने की होती है, वह पहले कैसे सोच ली जाए ? किन्तु दुनिया में कभी-कभी ऐसा चलता है । हमारी कल्पना की दुनिया में, हमारी विकल्पों की दुनिया में ऐसा होता है कि पहले सोचने वाली बात नहीं सोची जाती और बाद में सोचने वाली बात सोच ली जाती है। सोची ही नहीं जाती, बल्कि उसके लिए लड़ाइयां भी लड़ ली जाती हैं।
पति-पत्नी में झगड़ा हो गया। झगड़ा इतना तेज हो गया कि आसपास के पड़ोसी भी वहां इकट्ठे हो गए। यह सच है कि विवाह के कुछ वर्ष बीत जाते हैं तो झगड़ा फिर तेज ही होता है। पड़ोसियों ने पूछा-भाई, झगड़ा क्यों कर रहे हो परस्पर ? पत्नी ने कहा---झगड़ा क्या, झगड़ा तो होना ही है। कितने वर्ष हो गए इस घर में आए. पर ये मेरी एक बात भी नहीं मानते। हर बात में मनमानी
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