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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि
तो यह वही बात होगी कि दूसरों को समृद्धि का पाठ पढ़ाना और स्वयं फटेहाल जीवन बिताना । हम स्वयं साधना का प्रयोग करें, मंगल का प्रयोग करें, स्वयं उनकी सूत्र - पद्धति में जाएं तो सचमुच हमारे लिए सारी दिशाएं मंगलमय बन जाएंगी। यह मंगलसूत्र की साधना का बहुत महत्त्वपूर्ण सूत्र है ।
“आरोग्ग बोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दितु ” - इसमें भावना की गई है कि सिद्ध ! आपके द्वारा मुझे आरोग्य मिले, बोधि मिले, समाधि मिले। जीवन की हमारी तीन भावनाएं होती हैं ।
पहली है— आरोग्य - शरीर का आरोग्य, मन का आरोग्य और भावना का आरोग्य 1
दूसरी है- बोधि मिले, चेतना मिले ।
तीसरी है— आधि-उपाधि के चक्रव्यूह से निकलकर हम समाधि की अवस्था जा सके तो उससे बड़ा दुनिया में कोई मंगल नहीं हो सकता। हम भावना करें और सूक्ष्म मन की सारी शक्ति को जुटाकर भावना करें । आधि, व्याधि और उपाधि - शरीर की बीमारी, मन की बीमारी और कषाय की बीमारी- इन तीनों से मुक्त होकर हम समाधि के क्षेत्र में प्रवेश करें । धर्म हमारे लिए इसीलिए मंगल है कि उसके द्वारा व्याधि, आधि और उपाधि का छुटकारा होता है और समाधि द्वार में हमारा प्रवेश होता है ।
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