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मेरी दृष्टि ः मेरी सृष्टि शिला पर बैठता, ध्यान करता, भावना का प्रयोग में उत्तीर्ण । लामा बर्फ की शिला पर बैठता, ध्यान करता, भावना का प्रयोग करता और सारे शरीर से पसीना चूने लग जाता । कसौटी में वह उत्तीर्ण हो जाता । कैसे हो सकता है ? ध्यान में बैठो
और पसीना निकल आए ! हो सकता है, बहुत संभव है । बर्फ पर बैठे, आतप की भावना करें, सूर्य की भावना करें, बर्फ पर बैठे हुए भी पसीना चूने लग जाएगा। सारा शरीर गर्म हो जाएगा।
भगवान् महावीर वस्त्र नहीं रखते थे, बहुत स्पष्ट है । क्या यह संभव है, इतनी भयंकर सर्दी को आदमी इस प्रकार सहन कर सके? आपका तर्क होगा कि वे अनन्त शक्तिशाली थे। किन्तु अनन्तशक्ति का मतलब यह थोड़ा ही है कि सर्दी न लगे । अनन्तशक्ति का मतलब यह है कि उनका वीर्य कभी विचलित नहीं होता, चाहे कितने ही भयंकर उपद्रव और कष्ट आ जाएं । उनमें इतना असीम पराक्रम होता है कि उन्हें कोई विचलित नहीं कर सकता। कड़कड़ाती सर्दी में वे रहते थे। कैसे? मान लो भगवान् इतने शक्तिशाली थे, पर उनके साथ हजारों मुनि नग्न रहने वाले थे, वे किस प्रकार सहन करते थे? मात्र भावना का प्रयोग। आज भी कुछ मुनि नग्न रहते हैं। आज की चर्चा करना तो मैं पसन्द नहीं करता, क्योंकि वे वस्त्र तो नहीं रखते किन्तु सुरक्षा के शायद अनेक उपाय काम में लेते हैं। पर महावीर तो अकेले घूमते थे। उनके साथ तो कोई नहीं था, सुरक्षा का कोई उपाय भी नहीं था। फिर कैसे सम्भव था? आचारांग सूत्र में वर्णन मिलता है कि इतनी भयंकर, कंपा देने वाली बर्फीली हवा, जिसमें लोग बाहर निकलते भी नहीं थे, घर के भीतर आग तापते थे, उस भयानक सर्दी में महावीर रात के समय मकान के बाहर जाकर चक्रमण करते, जहां कहीं धूप आती वहां से उठकर छांह में जाकर बैठ जाते । आखिर यह कैसे सम्भव था? यहां है भावना का प्रयोग । जब भावना का प्रयोग होता है, सर्दी के बीच, हिमालय के बीच बैठकर भी पसीना निकाल देना कोई बड़ी बात नहीं है।
दूसरी कसौटी होती थी— भयंकर गर्मी में शरीर को उसी तरह कंपा देना जैसे भयंकर सर्दी में कांपता है । गर्मी के मौसम में सर्दी की भावना का जप किया जाता है, तो वैसा ही परिणमन हो जाता है। यह बिलकुल ठीक बात है कि हम भावना के द्वारा चांद जैसी निर्मलता, सूर्य जैसी प्रकाशशीलता और सागर जैसी गम्भीरता को उपलब्ध हो सकते हैं, यदि सिद्धों के प्रति हमारा समर्पण हो, श्रद्धा हो और हमारी भावना का प्रयोग हो ।
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