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मंगल पाठ
लोलुपता को वश में किया। उनमें जो शक्ति जागी, वही शक्ति वास्तव में मंगल होती है।
__ 'अरहंता मंगलं'-अर्हत् इसलिए मंगल है कि उनमें अनन्त शक्ति जाग जाती है, असीम शक्ति जाग जाती है । जब तक हम पदार्थ की सीमा से बंधे हुए हैं, पदार्थ की लोलुपता के साथ जुड़े हुए हैं, तब तक अनन्त शक्ति का जागरण नहीं हो सकता।
यह अनन्त और असीम शक्ति तब जागती है, जब हम अपने चैतन्य की सूक्ष्म शक्ति के साथ जुड़ जाते हैं। आज की हमारी बड़ी समस्या है कि हम स्थूल के साथ जुड़े हुए हैं, सूक्ष्म के साथ हम नहीं जुड़ते। हमारा एक बहुत विशाल जगत् है--सूक्ष्म जगत्, जिसे हम नहीं जानते । हम केवल स्थूल के साथ अपनी गाड़ी को घसीटे चले जा रहे हैं। मुझे आश्चर्य तो इस बात का होता है कि आज के इस वैज्ञानिक युग में भी अपनी दृष्टि को सूक्ष्म नहीं बना पा रहे हैं। जहां परमाणु का विश्लेषण हो चुका, जहां सौरमंडल की रश्मियों का विश्लेषण हो चुका और उनके प्रभावों का वर्णन हो चुका, फिर भी हम सूक्ष्म की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। एक बार सूर्य-ग्रहण होने वाला था। सैकड़ों वैज्ञानिक उस ग्रहण का अध्ययन करने में जुटे हुए थे । विदेशों से सैकड़ों-सैकड़ों वैज्ञानिक उन देशों में पहुंच गए जहां कि पूरा ग्रहण होने वाला था। ग्रहण के प्रभावों का कितनी सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाता है। पूरे ग्रहण के कितने प्रभाव होते हैं और किस प्रकार मनुष्य उनसे प्रभावित होते हैं। कल ही मैंने पढ़ा था कि वे लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं, जिनका मस्तिष्क पहले से ही थोड़ा अस्त-व्यस्त या विक्षिप्त होता है। गर्भवती स्त्रियों पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है। लोगों की यह धारणा है कि ग्रहण को प्रत्यक्ष या खुली आंखों से नहीं देखना चाहिए, थाली में पानी भरकर उसमें देखा जा सकता है। किन्तु इस ग्रहण के बारे में तो यह जानकारी मिली थी कि पानी में भी इसको नहीं देखना चाहिए। संभव है कि इससे दृष्टि क्षीण हो जाए। सूक्ष्म जगत् में, हमारे आस-पास में किस प्रकार की घटनाएं घटित होती हैं, उन घटनाओं पर हम ध्यान नहीं देते, केवल स्थूल दृष्टि से माप लेते हैं। ' सम्यक्दृष्टि वह व्यक्ति होता है, जिसमें स्थूल के प्रति आस्था टूट जाती है। केवल स्थूल सत्यों में आस्था रखने वाला व्यक्ति सम्यक्दृष्टि नहीं हो सकता। वह मिथ्यादृष्टि होता है । सम्यक्दृष्टि होने का अर्थ है---हमारी स्थूल और सूक्ष्म
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