SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मृत्युंजयी आचार्य भिक्षु मैं प्रणाम करता हूँ कंटालिया की उस धरती को जिसने एक महान व्यक्ति को जन्म दिया। मैं प्रणाम करता हूँ अपनी माता साध्वी बालूजी को जिन्होंने मुझे आचार्य भिक्षु के नाम और आचार्य तुलसी के सान्निध्य से परिचय कराया। मैं प्रणाम करता हूँ अपने गुरु आचार्य तुलसी को जिन्होंने मुझे आचार्य भिक्षु की आत्मा से परिचित कराया। मेरी दृष्टि में जन्म का कोई मूल्य नहीं होता। मूल्य होता है मृत्यु का। आचार्य भिक्षु ने जन्म और मृत्यु को समान महत्त्व दिया। उनके जीवन और मृत्यु की दूरी केवल तेरह किलोमीटर है। अधिक नहीं । उनका जन्म-स्थल है कंटालिया और निर्वाण-स्थल है सिरियारी । दोनों की दूरी है केवल तेरह किलोमीटर । मैं आचार्य भिक्षु को जन्म से व्याख्याकार नहीं मानता, किन्तु मृत्यु का महान् सूत्रकार मानता हूँ । उन्होंने जीवन भर मृत्यु की आराधना और उपासना की । वास्तव में जन्मदिन उसी का मनाया जाता है जो मृत्यु का उपासक होता है। जो मृत्यु का उपासक नहीं होता उसका आज तक जन्मदिन मनाया भी नहीं गया और मनाया भी नहीं जाएगा। ___जन्म का सूत्र है मृत्यु और मृत्यू का सूत्र है अभय । जिस व्यक्ति ने अभय को साध लिया, उसने मृत्यु की कला को सीख लिया । जिसने मृत्यु की कला सीख ली, उसने जन्म को सफल बना डाला। एक शब्द में कहूँ तो आचार्य भिक्षु मृत्यु के महान् उपासक और सत्य के व्याख्याकार थे। उनका व्यक्तित्व अभय से ओत-प्रोत था। एक नहीं, अनेक घटनाएं साक्षी हैं इस अभयमुद्रा की। उनका पहला निवास-स्थल था श्मशान की छतरियाँ । वे वहां रहे । अभय का कवच पहने हुए रहे। उल्लास ने उनका साथ दिया और वे आगे से आगे बढ़ते गए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy