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________________ जिज्ञासितं : कथितं १३७ __ - युवाचार्यपद का गरिमापूर्ण दायित्व ओढ़ने के बाद आप पहली बार गुजरात आए हैं, अहमदाबाद आए हैं। आप आचार्यप्रवर के साथ-साथ यहाँ आए हैं, इसलिए यह आपकी स्वतंत्र यात्रा नहीं है। फिर भी आपकी सोच आचार्यश्री के चिन्तन-बिन्दु से भिन्न नहीं हो सकती। इस दृष्टि से मैं जानना चाहती हूँ कि अहमदाबाद-यात्रा का उद्देश्य क्या है ? __यात्रा हमारा जीवन-व्रत है। जो जीवन का अंग बन जाए, उसका कोई अतिरिक्त उद्देश्य नहीं होता। पर हमारी अहमदाबाद-यात्रा का निश्चित ही कोई उद्देश्य है । उस उद्देश्य की पृष्ठभूमि पर विचार करता हूँ जो गुजरात की आध्यात्मिक धरती मेरे सामने आ जाती है । इस उर्वरा भूमि में अध्यात्म के बीज सहज रूप से अंकुरित और पल्लवित हो जाते हैं । यहाँ का प्रबुद्ध वर्ग धर्म और अध्यात्म के प्रति नैसर्गिक निष्ठा से प्रणत है। उसके मन में जिज्ञासाएं हैं और आशाएं हैं कुछ करने की । गुजरात की इस पुण्य धरती से अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान जन-जन तक पहुँचे तथा इनके द्वारा सामाजिक और मानसिक समस्याओं को समाधान मिले, यही एकमात्र उद्देश्य हो सकता है मेरी जानकारी के अनुसार अहमदाबाद आने का।" युवाचार्यश्री के उन शब्दों की प्रतिध्वनि कक्ष की दीवारों से टकराकर मेरे कानों तक पहुँची। उससे कक्ष की खामोशी में जो सरसराहट पैदा हुई, एक नये प्रश्न ने आकृति धारण कर ली। उस आकृति का अनावरण करते हुए मैंने पूछाः -आप अहमदाबाद से अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान को जन-जन तक पहुंचाना चाहते हैं तथा सामाजिक और मानसिक समस्याओं का समाधान करना चाहते हैं। इस दृष्टि से अहमदाबाद में दो मास का प्रवास काफी प्रभावी प्रतीत हो रहा है। यदि आपको यह काम आगे बढ़ाना है तो आप यहां चातुर्मासिक प्रवास क्यों नहीं कर लेते? __“यह सही है कि यहाँ की जनता में प्रेक्षाध्यान के प्रति आकर्षण है। यह भी सही है कि हम इस क्रम को आगे बढ़ाना चाहते हैं और यह भी सही है कि यहां चातुर्मास करने से काम में काफी गति आ सकती है। यदि आचार्यवर पहले से बालोतरा-चातुर्मास के लिए वचनबद्ध नहीं होते तो शायद यहां चातुर्मासिक प्रवास के लिए सोचना ही पड़ता..." युवाचार्यश्री अपनी बात पूरी करें, उससे पहले ही मैंने अपने अभिप्राय को स्पष्ट करते हुए कहा-“मेरा मतलब आचार्यश्री के चातुर्मास से नहीं है । क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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