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जिज्ञासितं कथितं
[ युवाचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने और प्रेक्षाध्यान पद्धति का प्रवर्तन करने के बाद महाप्रज्ञा की यह पहली गुजरात यात्रा थी। यहां की जनता ने आपके विचारों को ध्यान से सुना, समझा और प्रेक्षा के आलोक में जीवन को देखने का प्रयत्न किया। गुजरात यात्रा के विषय में कुछ जिज्ञासाएं साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी के मन में उभरी और उन्होंने युवाचार्यश्री से एक साक्षात्कार लिया। उसका अविकल संकलन प्रस्तुत है । सं०]
महान यायावर आचार्यश्री तुलसी ने एक लाख किलोमीटर से अधिक धरती को पांव पांव चलकर माप लिया। देश के अनेक प्रान्तों की धूलि आपके पुण्य चरणों का स्पर्श पाकर धन्य हो उठी। अपनी लम्बी यात्राओं के क्रम में आपने ईस्वी सन् १९५३ एवं १९६७ में अहमदाबाद में क्रमशः अल्पकालीन और चातुर्मासकालीन प्रवास किया। सोलह वर्ष के बाद आप फिर ईस्वी सन् १९८३ में अहमदाबाद पधारे । सोलह वर्ष के इस अन्तराल में अहमदाबाद के लोक-जीवन में कितना अन्तर आया तथा इस प्रवासकाल में वहां क्या कुछ प्रभाव पड़ा ?
इस सम्बन्ध में अधिकृत जानकारी पाने के लिए मैंने युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ से बातचीत करने की इच्छा प्रकट की । मेरे प्रथम अनुरोध पर ही युवाचार्यश्री ने स्वीकृति और समय साथ-साथ दे दिया । अपराह्न में पांच बजे का समय था । मैं युवाचार्यश्री के कक्ष में पहुचीं। वहां कुछ भाई अपनी जिज्ञासाओं और समस्याओं के बारे में समाधान पा रहे थे। मुझे देखते ही वे उठ खड़े हुए। यद्यपि मेरी चर्चा में कोई गोपन रहस्य नहीं था, फिर भी कक्ष इतना छोटा था कि उसमें अधिक व्यक्ति अच्छे ढंग से नहीं बैठ सकते थे । इसलिए काफी लोग बाहर चले गए । कुछ भाई और सन्त तथा हम तीन साध्वियां और युवाचार्यश्री - बस इतने ही साक्ष्य थे हमारी उस वार्ता के । औपचारिक बातचीत के लिए थोड़ा भी अवकाश नहीं था, इसलिए मैंने बिना किसी भूमिका के अपना पहला प्रश्न प्रस्तुत कर दिया ।
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