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अहिंसा सार्वभौम की कल्पना
अहिंसा की शक्ति से हम सब परिचित नहीं हैं । उसकी उपयोगिता के कुछ पहलू अस्पष्ट हैं, इसलिए हम उसे नकार रहे हैं । उसकी सृजनात्मक शक्ति के प्रति हमारी आस्था गहरी नहीं है.
प्रत्येक शक्ति के विकास के लिए त्रिसूत्री कार्यक्रम आवश्यक होता हैशोध, प्रयोग और प्रशिक्षण । वैज्ञानिक विकास के साथ यही त्रिसूत्री कार्यक्रम जुड़ा हुआ है ।
हम अपेक्षा करते हैं अहिंसा के क्षेत्र में बलिदानी कार्यकर्त्ता मिलें । इसकी पूर्ति कैसे संभव हो ? जिसके नये-नये आयाम नहीं खोजे जाते, वह वस्तु पुरानी पड़ जाती है । पुरानी के प्रति कोई आकर्षण नहीं हो सकता। किसी भी वस्तु की सच्चाई को प्रमाणित करने की कसौटी बनता है प्रयोग ।
अहिंसा की व्याख्या ज्यादा हो रही है। उसके प्रयोग नहीं हो रहे हैं । इसलिए अहिंसा के उपदेश जनता को आकर्षित नहीं कर रहे हैं ।
लोग सोचते हैं— हिंसा में शक्ति है, आकर्षण है। हजारों-हजारों लोग हिंसा की रणभूमि में प्राण - - विसर्जन कर देते हैं, पर अहिंसा की रणभूमि में प्राणार्पण करने वाले इने-गिने लोग भी दुर्लभ हैं। इस अंकन में कोई अतिरंजन नहीं प्रतीत हो रहा है । पर इस स्थिति के निर्माण में प्रशिक्षण के अभाव की भूमिका को अस्वीकर नहीं किया जा सकता । हिंसक शस्त्रास्त्रों पर शोध, प्रयोग और प्रशिक्षण के पीछे हजारों-हजारों वैज्ञानिक और प्रशिक्षक लगे हुए हैं । प्रतिदिन लाखों-लाखों पुलिस के जवानों और सेना के सैनिकों का अभ्यास चलता रहता है । किन्तु अहिंसा के प्रशिक्षण की कहीं कोई व्यवस्था नहीं है और न कहीं उसके प्रति कोई आकर्षण उत्पन्न करने की योजना है। ऐसी स्थिति में अहिंसा के विकास की कोई कल्पना नहीं की जा सकती । अहिंसक समाज की रचना मात्र एक स्वप्न बनी हुई है । उसे साकार करने के लिए अहिंसा सार्वभौम एक परिकल्पना है, एक साधन है, एक उपाय है ।
हिंसा की बाढ़ को रोकने का विकल्प है अहिंसा । अहिंसा के विकास का
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