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________________ ११० मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि की सबसे बड़ी समस्या है । जो गलत निर्णय होते हैं, वे सब तनाव की मनः स्थिति में होता हैं, इसलिए वर्तमान में मानव जाति को तनाव-मुक्ति का मार्ग बतलाना उसकी सबसे बड़ी सेवा है। मैंने इसे अपना जीवन-व्रत बनाया। मुनि अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए जीवन की यात्रा शुरू करता है, किन्तु अपनी समस्या केवल अपनी ही नहीं होती, वे दूसरों की भी होती हैं । दूसरों की समस्या केवल दूसरों की ही नहीं होती, वे अपनी भी होती हैं । अपने और दूसरों के बीच में कोई ऐसा लोहावरण नहीं है, जिससे एक की समस्या दूसरे में संक्रान्त न हो। इसलिए समस्या के समाधान का मार्ग सबके लिए सुलभ होता है, इसे मैं श्रेय मानता हूँ। मेरी दृष्टि में यह जीवन का सबसे बड़ा सृजनात्मक प्रश्न है । शायद रोटी की उपलब्धि से भी इसका अधिक मूल्य है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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