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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि
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बहुत
के अनुसार सोने का स्थान विभाग से निश्चित होता है । हम दीक्षा पर्याय में छोटे थे । दीक्षा पर्याय में बड़े साधुओं को अच्छा स्थान मिल गया और हमें सोने के लिए खुला स्थान मिला, जिसके कई दरवाजे थे । किवाड़ बिलकुल नहीं थे । मुनिश्री चंपालालजी स्वामी को पता चला, तब वे आए और उन्होंने हम सबसे कहा—अपने-अपने सिरहाने में जो नया कपड़ा है, वह निकालो। हमने निकाल दिए । उन्होंने कपड़ो को तान कर एक तंबू सा खड़ा कर दिया। चारो ओर से बन्द एक कपड़े का कमरा बन गया। हमने सीखा -- हर उपाय के लिए उपाय होता है । यदि उपाय की मनीषा जाग जाए तो उपायों को निरस्त करने में कोई कठिनाई नहीं होती ।
पूज्य कालूगणीजी की जन्मभूमि छापर में मर्यादा - महोत्सव का आयोजन हो रहा था । मुनिवर वहां नहीं थे । शारीरिक अस्वस्थता के कारण लाडनूं में ही रह गए थे । सुखलालजी स्वामी और मुनि अमोलकचंदजी लाडनूं से छापर आए । उन्होंने आचार्यवर से प्रार्थना की- मुझे वहां भेजा जाए। आचार्यवर ने उसे स्वीकार कर लिया । साध्वीप्रमुखा झमकूजी को इसका पता चला। मेरे रजोहरण का प्रतिलेखन वे करती थी । मध्याह्न के समय मैं उनके पास गया । उन्होने कहा— आप लाडनूं जा रहे है ? मैंने कहा— जा रहा हूं । वे बोली- फिर आपको गुरुदेव अपने पास नहीं रखेंगे, सदा के लिए अलग विहार करने वाले साधुओं के साथ भेज देगें। मैं कुछ असमंजस मे पड़ गया। मैं पूज्य गुरुदेव के पास पहुंचा, साध्वीप्रमुखा ने जो बात कही वह बता दी। पूज्य गुरुदेव ने मृदु मुस्कान के साथ कहा- तुम तुलसी के पास लाडनूं चले जाओ। कोई चिंता मत करो । मैंने मुनि-द्वय के साथ लाडनूं के लिए विहार किया। बीच में हम लोग एक दिन सुजानगढ़ रुके। वहां नथमलजी स्वामी का आतिथ्य स्वीकार किया । दूसरे दिन- लाडनूं पहुंचे। मुनिवर ने तथा अन्य सभी साधुओं ने हमारी आगवानी की । अलग रहने में मुझे जो कठिनाई अनुभव हो रही थी, उसका समाधान हो गया । अध्ययन फिर से चालू हो गया। मुनिवर को भी पूज्य कालूगणी से अलग रहने के कारण एक रिक्तता अनुभव हो रही थी । उसे यत्किंचित् मात्रा में भरने का श्रेय मुझे उपलब्ध हुआ, यह मैं मानता हूं । एक दिन की घटना है। सभी साधु गोचरी के लिए गये हुए थे। मैं मुनिवर के पास बैठा था । उन्होनें मुझे अध्ययन के लिए प्रेरणा दी, जीवन - विकास के कुछ सूत्र बताये और फिर कहा- तुम भी मेरे जैसे बनोगे? मैंने कहा- "मुझे क्या पता । आप बनायेंगे तो बन जाऊंगा।" मुझे दूसरे
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