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________________ मैं कुछ होना चाहता हूं सुधारना चाहते हैं। दोनों की प्रक्रिया में अन्तर है। वे सीधा समाज को सुधारना चाहते हैं, किन्तु अध्यात्मवादी, व्यक्ति को सुधार कर समाज को सुधारना चाहते हैं 1 भविष्य ही बता सकता है कि कौन-सी प्रक्रिया सही है? यदि हम तथ्यों का सही विश्लेषण करते हैं तो यह सचाई बहुत स्पष्ट हो जाती है कि व्यक्ति को बदले बिना समाज को नहीं बदला जा सकता। साम्यवादी पार्टी की रिपोर्ट का अंश पढ़ा। उसमें एक टिप्पणी थी- इतने वर्षों के प्रयत्न के बाद भी लगता है कि व्यक्ति बदला नहीं है । वहां व्यक्तिगत स्वामित्व समाप्त कर दिया गया था, पर फिर उसे आंशिक रूप से स्वीकार करना पड़ा। साम्यवादी व्यवस्था में जहां भ्रष्टाचार की कल्पना नहीं की जा सकती वहां करोड़ों रुबल का घोटाला पकड़ा गया है। न जाने कितने लोगों को फांसी दी गई, मारा गया। अपराधी को मार दो, सुधार हो जाएगा, यह आज मान्य नहीं है। इस पर काफी चिन्तन हो रहा है और फिर से इस बिन्दु पर पहुंचा जा रहा है कि व्यक्ति को भीतर से बदलना चाहिए । दो सौ वर्ष पूर्व आचार्य भिक्षु ने एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि हृदय-परिवर्तन के बिना धर्म नहीं हो सकता । यह इतना महत्त्वपूर्ण सूत्र है कि आज का समूचा युग इस सचाई को स्वीकार करता जा रहा है - हृदय परिवर्तन के बिना धर्म नहीं हो सकता । हृदय परिवर्तन के बिना समाज नहीं सुधर सकता। ये बातें जब स्पष्ट होंगी तब अध्यात्म की ज्योति प्रज्वलित होगी और तब व्यक्ति सुखी बनेगा, समाज सुखी बनेगा। समाज सुखी बनेगा तो राष्ट्र समृद्ध, स्वस्थ और सुखी बनेगा । ८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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