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________________ सुधरे व्यक्ति समाज व्यक्ति से आते हैं, साधना करते हैं और अपने आप में कुछ परिर्वतन महसूस करते हैं। आज के बड़े-बड़े मनोवैज्ञानिक भी आदतों को बदलने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। वे दवाइयों के द्वारा कुछ रासायनिक परिवर्तन कर इस दिशा में कुछ सफल होते हैं, पर पूरी सफलता उनके हाथ नहीं लगती। दवाइयां दे देकर कब तक बदला जा सकता है? दवाइयों की भी एक सीमा है। वास्तव में यदि हमारा अन्त:करण बदल जाए, ग्रन्थियों के स्राव बदल जाएं, जैविक, रासायनिक परिवर्तन हो जाए तो परिवर्तन आ सकता है। यदि भावनात्मक प्रयोगों के द्वारा, एकाग्रता के द्वारा, प्राणशक्ति के द्वारा, मानसिक प्रक्रियाओं के द्वारा तथा श्वासप्रेक्षा, शरीरप्रेक्षा और चैतन्य-केन्द्र-प्रेक्षा के द्वारा स्वत: हम रसायनों को बदलने में सक्षम होते हैं तो फिर किसी दवाई की आवश्यकता नहीं रह जाती। ____एक भाई शिविर में है। वह बता रहा था कि उसने लगभग पचास हजार रुपये खर्च किए हैं अपने रोग को मिटाने के लिए। रोग था अनिद्रा का। अनेक प्रयत्न किए कि बिना नींद की गोली खाए नींद आ जाए, पर वैसा नहीं हुआ। शिविर की महिमा सुनी। लोगों के अनुभव सुने । शिविर में रहा। अब ऐसा अनुभव हो रहा है कि नींद के लिए गोली आवश्यक नहीं है। बिना गोली लिए सुखपूर्वक नींद लेता हूं। आचार्यवर ने आज ही कहा था कि गुरु का काम इतना-सा होता है कि वे अपने शिष्य को कोई अनुभूति करा दें। यदि शिष्य का अनुभव जाग जाता है तो उसे प्रेरणा की आवश्यकता नहीं रहती। सुधरे व्यक्ति'-यह बहुत महत्त्वपूर्ण स्वर है। जिस दिन व्यक्तिसुधार की प्रक्रिया गतिशील होगी, उस दिन से समाज-सुधार की प्रक्रिया बहुत स्पष्ट हो जाएगी। __आज आवश्यकता है कि हम 'सुधरे व्यक्ति' के सिद्धांत को त्वरा से प्रचारित करें। आज की दुनिया में संचार के बहुत साधन हैं। यदि योजना हो, अनुभव हो और बुद्धि हो तो बहुत कुछ किया जा सकता है और यदि तीनों की कमी हो तो कुछ भी नहीं हो सकता। ___व्यक्ति-सुधार का स्वर अणुव्रत के साथ उच्चारित हुआ। जिस दिन अणुव्रत आन्दोलन का शुभारम्भ हुआ उसी दिन से यह स्वर शक्तिशाली बना। 'सधरे व्यक्ति समाज व्यक्ति से'-यह हमारा एक लक्ष्य है। किन्तु समाज के सुधारकों से हमारा कोई विवाद नहीं है। आज के साम्यवादी और समाजवादी लोगों से हमारा कोई विरोध नहीं है। वे भी समाज को सुधारना चाहते हैं, और हम भी समाज को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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