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________________ वाचिक अनुशासन के सूत्र ५५ बादशाह ने तीन व्यक्तियों को चुना । शेष को विदाई दे दी । बादशाह ने तीनों व्यक्तियों को सामने खड़ा कर कहा- बताओ, इत्तफाक से मेरी दाड़ी में और तुम्हारी दाढ़ी में एक साथ आग लग जाए तो तुम क्या करोगे ? पहला तत्काल बोल उठा- हुजूर! आपकी दाढ़ी की आग तत्काल बुझा दूंगा। मेरी दाढ़ी की आग की चिन्ता ही नहीं करूंगा। दूसरा बोला - जहांपनाह! पहले मैं अपनी दाढ़ी की आग बुझाऊंगा और फिर आपकी दाढ़ी की चिन्ता करूंगा।' तीसरा बोला- 'हजूर ! एक हाथ से आपकी दाढ़ी की आग बुझाऊंगा और दूसरे हाथ से अपनी दाढ़ी की आग बुझाऊंगा ।' बादशाह ने तीनों व्यक्तियों के उत्तर सुनकर कहा - 'पहला आदमी अव्यावहारिक है। दुनिया में ऐसा कोई भी आदमी नहीं होता जो कठिन समय आने पर अपनी बात न सोचकर दूसरे की बात सोचता हो । अपनी हित - चिन्ता न कर दूसरे की हित - चिन्ता करता हो । वह व्यक्ति सर्वथा अव्यावहारिक है । जो व्यक्ति अव्यावहारिक बात करता है, वह हमेशा धोखा देता है । अज्ञानी व्यक्ति सदा अव्यावहारिक बात करता है । वह ऐसी बात करता है कि सामने वाले को लुभा लेता है, किन्तु उसे धोखा देता है । ' 1 'दूसरा आदमी स्वार्थी है। स्वार्थी आदमी किसी का भला नहीं करता। वह खुदगरज होता है । वह सदा अपनी ही बात सोचता है, अपना ही भला करता है । दूसरे की बात को वह सोच ही नहीं सकता। वह आदमी भी खतरनाक होता है । ' 'तीसरा आदमी व्यावहारिक है । वह व्यवहार की बात करता है, सचाई की बात करता है । वह न अव्यावहारिक है और न स्वार्थी । वह व्यवहार के धरातल पर जीता है । ' बादशाह ने उस तीसरे व्यक्ति को नौकरी दे दी। दोनों को विदा कर दिया । जो आदमी अपनी भलाई करना जानता है और साथ-साथ दूसरे की भलाई करना भी जानता है वह व्यावहारिक होता है । यह व्यवहार की बात होती है । हमारी दुनिया में यही व्यवहार चलता है 1 भाषा भी एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा अपनी भी भलाई हो सकती है और दूसरे की भी भलाई हो सकती है। भाषा में भलाई निष्पादन करने की शक्ति है तो उसमें बुराई करने की शक्ति भी है। दोनों ओर वह समानरूप से चलती है। भाषा में जो क्षमता है, भाषा के द्वारा जो संपादित होता है, वह न मन के द्वार होता है और न शरीर के द्वारा होता है। इसलिए भाषा का मूल्य सबसे अधिक है 1 हमारे जीवन- तंत्र के तीन साधन हैं-मन, वाणी और शरीर । सबसे पहले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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