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________________ शारीरिक अनुशासन के सूत्र मिटता। दर्द होता है, ज्वर आ जाता है और कभी-कभी पक जाता है। ऐसी स्थिति में उस रोगी को भंयकर कष्ट से गुजरना होता है। इंजेक्शन सताता है, परन्तु क्या इंजेक्शन शरीर को सताने के लिए दिया जाता है? नहीं। उसका उद्देश्य सताना नहीं है, रोग मिटाना है। क्या आपरेशन शरीर को सताने के लिए किए जाते हैं? नहीं। शरीर को कष्ट अवश्य ही होता है, पर आपरेशन का उद्देश्य सताना. नहीं हो सकता। जहां बीमारी को, दोष को मिटाने की बात प्राप्त है वहां कष्ट की बात भी प्रसंगोपात है, उसे अलग-थलग नहीं किया जा सकता। ____ मैं उस भाई की बात को स्वीकार करता हूं। फिर शरीर की सिद्धि में शरीर को सताने की बात आ सकती है, किन्तु सताने के लिए नहीं सताया जा रहा है, अपितु बीमारी को मिटाने के लिए या शरीर को साधने के लिए किया जा रहा है, कष्ट भी हो सकता है और सताने जैसी भाषा भी हो सकती है। कायसिद्धि में आसन, प्राणायाम, बंध आदि सारे उपाय उपादेय हैं। किन्तु इन सब में महत्त्वपूर्ण है, निस्संगता का प्रयोग। शरीर भानुमती का पिटारा है। यदि कोई आदमी अपना पूरा जीवन लगा दे फिर भी वह पूरे शरीर को नहीं समझ पाता । बहुत पेचीदा है शरीर तंत्र । शरीर पर चमड़ी दिखाई देती है। कोरा रंग और रूप दिखाई देता है। चमड़ी इतनी ही नहीं है। इसकी रचना को देखें। इसके एक वर्ग सेंटीमीटर में दो लाख कोशिकाएं हैं। हमारी चमड़ी में पसीना निकालने वाली दो लाख ग्रन्थियां हैं। चमड़ी का पूरा विवरण पढ़ने पर लगता है कि चमड़ी का यह कारखाना बहुत विशाल और पेचीदा है। मैं कोरी चमड़ी के विषय की बात कर रहा हूं। बहुत लम्बी-चर्चा है। शरीर को साधने के लिए निस्संगता-अनासक्ति बहुत जरूरी है। आसक्ति के द्वारा शरीर में अनेक दोष आते हैं। जब-जब हमारे मन में मूर्छा के भाव जागते हैं, आसक्ति जागती है तब शरीर का कण-कण मल से भर जाता है। बड़ी दयनीय स्थिति बन जाती है। आदमी समझ ही नहीं पाता। वह मल अनासक्ति के द्वारा ही घुलता है। शरीर-प्रेक्षा, कायोत्सर्ग, निस्संगता-ये सारे प्रयोग चेतना के प्रति जागने के प्रयोग हैं। ध्यान का अर्थ शून्यता नहीं है। ध्यान का अर्थ होता है चेतना के प्रति जागना और फिर उसका साक्षात्कार करना। ध्यान के दो अंग हैं-जागना और फिर उसका साक्षात्कार करना। पहले जागना होता है। और जैसे-जैसे जागृति का अभ्यास बढ़ता है, वह परिपक्व होता है तब साक्षात्कार की बात आती है। श्वास का साक्षात्कार, शरीर का साक्षात्कार, शरीर के अवयवों का साक्षात्कार और होते-होते एक दिन आता है कि चेतना का साक्षात्कार हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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