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शारीरिक अनुशासन के सूत्र
उन्होंने सचाई का उद्घाटन किया। दुनिया की प्रकृति है कि बिना लड़े काम नहीं चलता। इसीलिए यह कहावत भी प्रचलित हो गई - 'बिना रोए मां भी स्तनपान नहीं कराती।' जब बच्चा रोता है, तभी मां उस ओर ध्यान देती है । बच्चा शांत सोया रहे तो मां का ध्यान उस ओर जाता ही नहीं ।
लड़ने की बात अनिवार्य हो गई। पेट लड़ाकू है । पाचन-संस्थान लड़ाकू है, आंतें लड़ाकू हैं। एक ही उपवास में दिन के तारे दिखने लग जाते हैं। बड़ी कठिनाइयां पैदा हो जाती हैं । किन्तु हृदय, गुर्दे, मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी- ये आक्रामक नहीं हैं, लड़ाकू नहीं हैं। इन पर हम ध्यान ही नहीं देते। इसीलिए अनेक मल जमा होते चले जाते हैं। हमारे शरीर में रीढ़ की हड्डी का बहुत महत्त्व है। सारे स्नायु इसमें से गुजरते हैं, चाहे वे स्नायु ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर जाते हों, ये सब इसमें से गुजरते हैं। यह एक ऐसा मार्ग है जो सबको नियन्त्रित करता है। जो व्यक्ति रीढ़ की हड्डी को नहीं साध लेता वह साधना के क्षेत्र में बहुत सफल नहीं हो सकता । जिसकी रीढ़ की हड्डी लचीली नहीं है वह मानसिक दृष्टि से अधिक विकसित नहीं हो सकता और शारीरिक दृष्टि से भी वह स्वस्थ नहीं हो सकता । अड़कन होना, दर्द होना आदि सब इसी के परिणाम हैं । इसीलिए एक कुशल डॉक्टर सबसे पहले इस बात को देखता है कि रीढ़ की हड्डी कैसी है?
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आज एक चिकित्सा पद्धति प्रचलित है, इसका नाम है 'ऑस्टिओपेथी । ' उसमें रीढ़ की हड्डी के आधार पर पूरे शरीर की चिकित्सा की जाती है । देखा जाता है कि रीढ़ की हड्डी में कहां खराबी है ? क्या आदमी ने कभी रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाने का प्रयास किया है? क्या कभी वह उसे पोषण देता है? कभी नहीं । इस ओर उसका ध्यान ही नहीं जाता ।
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रीढ़ की हड्डी को लचीला करने का उपाय है- आसन । आसन के द्वारा उसको रक्त मिलता है । आसन के द्वारा उसको मालिश मिलती है। ये दोनों उसे लचीली बनाते हैं। हलासन, अर्द्धमत्स्येन्द्रासन आदि आसनों के द्वारा रीढ़ की हड्डी पूरा रक्त मिल जाता है और उसकी अच्छी मालिश हो जाती है । वह लचीली है । उसकी शक्ति बढ़ती है। रीढ़ की हड्डी लचीली होती है तो मन भी लचीला होता है और शरीर भी लचीला होता है । किन्तु आदमी इन उपायों को काम में नहीं लेता । दवाई में जितना विश्वास है, उतना विश्वास इन आसनों में नहीं है । यही कारण है कि वह सदा बीमार ही बना रहता है ।
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यह प्रज्ञा-प्रदीप ध्यान-साधना का केन्द्र है । दूसरे शब्दों में कहूं तो यह आदमी के विभिन्न दर्दों के प्रकट होने का केन्द्र है। आदमी विभिन्न प्रकार के दोषों का भण्डार है । वह यहां आता है । साधना करता है । दोष उभरते हैं, उखड़ते हैं ।
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