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________________ श्वास पर अनुशासन ३७ नियम तक पहुंच जाते हैं तब सारे प्रश्न स्वत: समाहित हो जाते हैं। मैंने प्रश्नकर्ता शिविरार्थी से कहा-तुम इसलिये कह रहे हो कि तुम नियम को नहीं जानते। नियम को जान लो, प्रश्न समाप्त हो जाएगा। एक व्यक्ति ने किसी जौहरी से कहा-तुम मेरे घर पर चलो। मेरे पास एक बहुमूल्य हीरे की अंगूठी है। उसका सही मूल्याकंन कराना है। जौहरी उसके घर गया। पहले दरवाजे में प्रवेश किया। वह व्यक्ति बोला-देखो, यह राजस्थानी शिल्प है। कितनी सुन्दर कारीगरी है! शिल्पी ने कितना गजब का शिल्प प्रस्तुत किया है! दूसरे दरवाजे में प्रवेश किया। व्यक्ति ने जौहरी से कहा-देखो, कितना सुन्दर वातायन है। इसकी चित्रकला को देखो। कितने भव्य और सुन्दर चित्र हैं! चित्रकार ने अपनी सारी कला यहां अभिव्यक्त कर दी है। जौहरी बोला-भंले आदमी! मुझे इन सब चीजों को देखने-परखने का समय नहीं है। मैं तो हीरे की अंगूठी देखने आया हूं। बताओ, वह कहां है? वह बोला-धैर्य रखो। जब तुम आ ही गए हो तो मेरी सारी चीजें देखो। यह नहीं होगा कि मैं सबसे पहले हीरे की अंगूठी दिखा दूं। घर आ ही गए तो सब कुछ देखना होगा। दोनों ने तीसरे दरवाजे में प्रवेश किया। वह बोला-जौहरी जी! देखो, कितना सुन्दर स्थापत्य है! दुनिया में अन्यत्र ऐसा स्थापत्य देखने को नहीं मिलेगा। इस प्रकार वह सातों दरवाजों का वर्णन करते-करते जौहरी को घुमाता रहा। एक-दो घण्टा बीत गया। फिर उसने कहा-यह हमारा अतिथिगृह है। यह हमारा स्वागत-कक्ष है। यह भोजन गृह और यह शयनकक्ष है। तुम स्वागत कक्ष में बैठो। मैं नाश्ते की तैयारी करता हूं। घर आए हो तो बिना खाए कैसे जाओगे? इस प्रकार वह जौहरी का समय लेता रहा। नाश्ता कराया। फिर घर की छत पर ले गया। वहां से नगर का दृश्य दिखाया। फिर उसे भूमिगृह (भोहरे) में ले गया। वहां उसे एक आसन पर बिठाया। आलमारी खोली। एक डब्बी निकाली। डब्बी को खोला। उसमें थी वह हीरे की अंगूठी। उस पर अनेक वस्त्र लपेट रखे थे। एक-एक वस्त्र खण्ड को अलग किया। फिर अंगूठी लेकर जौहरी से कहा-यह है मेरी हीरे की अंगूठी। मैंने मेरे शिविरार्थी प्रश्नकर्ता से पूछा-क्या वह जौहरी मूर्ख था जो हीरे की अंगूठी देखने आया था और उसको देखने की प्रक्रिया में और-और पचासों चीजें देखीं? वह बोला-मूर्ख कैसे? यह तो कम ही है। यदि वह पहले दरवाजे में नहीं आता तो भूमिगृह में कैसे जाता? एक-एक दरवाजा पार करने पर ही तो वहां पहुंचा है। आलमारी नहीं खुलती तो डिबिया कैसे निकलती? डिबिया नहीं निकलती तो अंगूठी कैसे बाहर आती। यह तो क्रम है। सबको इसी क्रम में से गुजरना होता है। यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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