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________________ प्रवास पर अनुशासन जानते । यदि नियम ज्ञात होता तो यह प्रश्न समस्या नहीं बनता। जब तक हम नियम को नहीं जानते तब तक हर बात समस्या बन जाती है । I एक आदमी दौड़ा जा रहा था । पीछे-पीछे कुत्ता भी दौड़ रहा था । आदमी कुत्ते के डर से भाग रहा था। आगे आदमी दौड़ रहा है, पीछे कुत्ता भाग रहा है पर दोनों क्यों दौड़ रहे हैं? इस प्रश्न का उत्तर नियम को जान लेने पर ही दिया जा सकता है। आदमी भय के कारण दौड़ रहा है? जब भय बढ़ता है तब आदमी की एड्रीनल ग्रन्थि का स्राव बढ़ जाता है। उस एड्रीनलीन रस की गन्ध कुत्ते को आती है, कुत्ता गन्ध के पीछे दौड़ता है। आदमी के पीछे कुत्ता नहीं दौड़ता । कुत्ता दौड़ता है उस गन्ध के पीछे । आदमी भय को छोड़कर यदि खड़ा हो जाता है, कुत्ते को गन्ध आनी बन्द हो जाती है और वह भी खड़ा रह जाता है। दौड़ता हुआ आदमी स्वयं कुत्ते को दौड़ाता है । गन्ध का आकर्षण कुत्ते को दौड़ाता है । आदमी खड़ा रहना नहीं जानता, इसलिये सब उसके पीछे दौड़ रहे हैं । यदि वह खड़ा रहना जान जाए तो कोई भी पीछे नहीं दौड़ेगा । स्वयं खड़ा रहे तो सब खड़े रह जाएंगे। हम नियम को नहीं जानते । दशवैकालिक आगम में एक श्लोक है 'हत्यसंजए पायसंजए, वायुसंजय संजइंदिए । अज्झप्परए सुसमाहियप्पा सुत्तत्थं च वियाणई जे स भिक्खु । ।' इस श्लोक को पढ़ा तो लगा कि आगमकार ने कितनी छोटी-छोटी बातों का उल्लेख किया है । आगमकार कहते हैं-हाथ का संयम करो, पैरों का संयम करो, वाणी का संयम करो। ये सारी साधारण बातें हैं । किन्तु जब नियम का पता चला तब ज्ञात हुआ कि यह श्लोक बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । इसमें दिये गये निर्देश बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । इस श्लोक का नियम मैं पहले प्रस्तुत कर चुका हूं लेश्या के प्रकरण में, ‘आभामंडल’ ग्रन्थ में। दूसरे नियम को आज प्रस्तुत करना चाहता हूं । यह एक श्लोक है । इसकी कम से कम सात सौ व्याख्याएं तो हो सकती हैं। एक नियम बतलाया गया है कि भगवान महावीर के प्रत्येक वचन की सात सौ व्याख्याएं की जा सकती हैं । यदि कोई अधिक प्रज्ञा वाला व्यक्ति हो और अधिक नयों का ज्ञाता हो तो उसकी सात हजार, सात लाख, सात करोड़ या सात अरब व्याख्याएं भी कर सकता है । परन्तु कम-से-कम सात सौ व्याख्याएं तो हमारे वश की बात है । यह तभी संभव है, जब हम नियम को जान जाएं। नियम का ज्ञान होने पर नई-नई बातें उद्घाटित की जा सकती हैं । श्लोक में तीन तथ्य बताए गए हैं। हाथ का संयम करो, पैर का संयम करो और वाणी का संयम करो। इसके द्वारा तुम जितेन्द्रिय बन जाओगे । प्रश्न होता Jain Education International ३५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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