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________________ श्वास पर अनुशासन एक शिविरार्थी भाई ने कहा-प्रेक्षा-ध्यान का प्रयोग प्रारम्भ हुआ, एक घोष सुना-आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें। मन बहुत प्रसन्न हुआ कि हम आत्मा को देख पायेंगे। चिर-स्वप्न साकार होगा। मनुष्य में आत्मा को देखने की प्रबल लालसा होती है। प्रत्येक व्यक्ति आत्मा को देखना चाहता है, परमात्मा का साक्षात्कार करना चाहता है। वह उन्हें खुली आंखों से देखना चाहता है, सामने खड़े हों, वैसे देखना चाहता है। मुझे अच्छा लगा कि बस, अब आत्मा का साक्षात्कार हो जाएगा। किन्तु प्रयोग के प्रारम्भ में ही कहा गया-श्वास को देखें । मुझे बड़ी निराशा हुई। आया था आत्म-साक्षात्कार करने और कराया जा रहा है श्वास-दर्शन । स्वप्न मीठा था, पर वह बीच में ही टूट गया। कहां आत्म-साक्षात्कार और कहां श्वास-दर्शन ! प्रश्न हुआ, क्या शिविर में श्वास को ही देख पायेंगे? यदि यही शिविर की फलश्रुति है तो यहां आने की जरूरत ही क्या है। श्वास बेचारा रोज चलता है। घर पर चलता है, दुकान में चलता है। सोते, उठते, बैठते यह चलता ही रहता है। उसे हम कहीं भी देख लेते। इतना आयास उठा कर यहां आने की आवश्यकता ही क्या थी? फिर हमें बताया क्यों गया कि आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें? तर्क आखिर तर्क होता है। प्रत्येक तर्क का प्रतितर्क होता है। कमजोर तर्क को बलवान तर्क काट देता है। तर्क कितना ही बलवान हो उसको काटने के लिए दूसरा तर्क प्रस्तुत किया जा सकता है। दुनिया में ऐसा एक भी तर्क नहीं है, जिसका प्रतितर्क न हो, विरोधी तर्क न हो। एक बार सुनते हैं तो लगता है कि तर्क अकाट्य है। जो अकाट्य होता है वह तर्क हो नहीं सकता। अनुभव मात्र अकाट्य होता है। तर्क कभी अकाट्य नहीं होता। तर्क है बुद्धि का खेल। जो बुद्धि से संबंधित है वह अकाट्य नहीं हो सकता। अनुभव का संबंध चेतना से है। उसके साथ शाश्वत सत्य का पक्ष होता है। तर्क के साथ शाश्वत सत्य का पक्ष नहीं होता। ___ मैं तर्क में नहीं उलझा और इसीलिए नहीं उलझा कि कल ही मैंने मेरे आचार्य से सुना था-तर्क में सचाई नहीं मिलती। तर्क सत्य तक नहीं पहुंचाता। मैं उलझा नहीं। मैंने शिविरार्थी की बात सुनी। दो क्षण मौन रहा। फिर मैंने कहा-भाई! तुम्हारी बात को काटना नहीं चाहता। तर्क के प्रति तर्क प्रस्तुत करना नहीं चाहता। एक कहानी सुनाना चाहता हूं और इसलिए कि तर्क नीरस होता है. कहानी सरस होती है। जब हम सरसता की बातें कर रहे हैं तो फिर नीरसता को बीच में क्यों लायें? तम्हारे मन में यह प्रश्न इसलिये उहा कि तम नियम को नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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