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________________ आहार और अनुशासन अर्थ है-अपनी शक्तियों को पहचानने का प्रयत्न । अपने भीतर अनन्त ज्ञान है, अनन्त आनंद है, अनंत शक्ति है। जब वह उनको पहचानने के लिए पहला कदम उठाता है, तब वह अपने आपको पहचानने में समर्थ होता है। ध्यान की साधना अपने आपको पहचानने का महान अनुष्ठान है। इस अनुष्ठान की सफलता तभी है जब आदमी अपने आपको बदल दे, रूपांतरित कर दे। रूपान्तरण के लिए आहार-शुद्धि का अभ्यास आवश्यक है। हित आहार, मित आहार और सात्विक आहार के अभ्यास से रूपान्तरण घटित होने लगता है। जैसे-जैसे यह अभ्यास बढ़ता है, शरीर की विद्युत् बदलती है, रसायन बदलते हैं, चैतन्य-केन्द्रों की सक्रियता बढ़ती है। जो केन्द्र सोने योग्य होते हैं, वे सो जाते हैं और जो जागने योग्य होते हैं, वे जाग जाते हैं। नीचे के केन्द्र सो जाते हैं और ऊपर के केन्द्र जाग जाते हैं। जिस दिन यह जागृति होती है, उस दिन नई दुनिया का अनुभव होता है, नये जीवन की अनुभूति होती है और तब आदमी इस स्वर में कह सकता है-जो सम्पदा आज तक नहीं मिली, वह आज हस्तगत हो गई। जो जागृति आज तक नहीं आई, वह आज घटित हो गई। जिज्ञासा समाधान प्रश्न:-आहार के द्वारा रसायन बदलते हैं और रसायनों से प्रवृत्तियां बदलती हैं। आज कृत्रिम रसायनों के द्वारा प्रवृत्तियों के बदलने के प्रयोग चल रहे हैं। फिर उनमें और ध्यान में अन्तर क्या रहा? उतर:-रसायनों का निर्मण केवल आहार के द्वारा ही नहीं होता, भावना के द्वारा भी महत्त्वपूर्ण ढंग से होता है। हम भावनाओं के द्वारा भी महत्त्वपूर्ण रसायनों को निर्मित कर सकते हैं, रसायनों को बदल सकते हैं। रसायनों को बदलने की सबसे उचित प्रक्रिया है ध्यान। आहार ध्यान में सहायक बनता है। उचित आहार के द्वारा उचित रसायनों का निर्माण होता है। उससे ध्यान में सहयोग मिलता है, प्रवृत्तियों की निर्मिति में और उनके रूपान्तरण में सहयोग मिलता है। कृत्रिम रसायन निरापद नहीं होते। उनके साथ खतरे भी जुड़े हुए हैं। इस तथ्य को स्वयं वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं। गोबर की खाद स्वाभाविक होती है। उससे बहुत अच्छा अनाज पैदा होता है। कृत्रिम खादों से अनाज के साथ-साथ विष भी पैदा होता है। कृत्रिम खाद की तरह ही है कृत्रिम रसायन । वे खतरे से खाली नहीं हैं। कृत्रिम रसायनों का अधिक प्रयोग चूहों पर, बन्दरों पर हो रहा है। अभी मनुष्यों पर विशेष प्रयोग नहीं हो रहे हैं। खतरे बहुत लगते हैं। स्वाभाविक भोजन और ध्यान की प्रक्रिया के द्वारा यदि हम रसायनों को बदलते हैं तो यह अत्यन्त निरापद और लाभप्रद होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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