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मैं कुछ होना चाहता हूं शाक होता है वैसे ही नमक का शाक होता है। उसमें भी नमक-मिर्च डाले जाते हैं। नमक को भी नमकीन बनाने का प्रयत्न होता है। इस शाक को वे बड़ी रुची से खाते हैं। यह शाक किसी भी दृष्टि से हितकर नहीं होता। यह स्वादिष्ट अवश्य होता है, पर हितकर नहीं। मांसाहारी लोग नमक बहुत खाते हैं। मांस को पचाने के लिए नमक की अधिक जरूरत होती है। इसलिए मांसाहार का अर्थ होता है अनेक बीमारियों को निमंत्रण देना।
हितकर या अहितकर की व्याख्या एकांगी दृष्टि से नहीं की जाती है। अनेक दृष्टियों से उसकी व्याख्या करनी होती है। देश की दृष्टि से हितकर, काल की दृष्टि से हितकर, सार की दृष्टि से हितकर, अवस्था की दृष्टि से हितकर। बच्चे के लिए प्रोटीन की अत्यधिक आवश्यकता होती है। दूध की भी आवश्यकता होती है। पर कोई व्यक्ति बचपन पार कर युवावस्था में चला जाता है और प्रोटीन का अत्यधिक सेवन करता है तो वह अनेक रोगों को निमन्त्रित करता है। अवस्था. काल तथा अन्यान्य स्थितियों को ध्यान में रखकर जब मात्रा सहित किसी पदार्थ का उपयोग करते हैं तो भोजन हितकर होता है। दूध अच्छा भोजन है। परन्तु उसको कब, कितनी मात्रा में लेने का सापेक्ष दृष्टिकोण नहीं होता है तो वह अच्छा भी बुरा बन जाता है। अमृत भी विष बन जाता है।
दूसरा प्रश्न है, मित भोजन क्या है? हित के साथ मित जुड़ा हुआ है। यह मात्रा-बोध का सूचक है। कौन-सी वस्तु कितनी मात्रा में लेनी चाहिए, इसका ज्ञान आवश्यक है। मुनि के लिए भोजन का एक दोष है-प्रमाणातिक्रान्त । मुनि प्रमाण से अतिरिक्त भोजन करता है तो वह इससे स्पृष्ट होता है। आयुर्वेद के अनुसार 'अधिक खाना' भोजन का एक दोष है। अधिक खाने वाला अनायास ही अनेक रोगों को निमन्त्रित कर लेता है।
भोजन के दो प्रकार हैं-हल्का या लघु भोजन और गरिष्ठ भोजन । लघु भोजन वायु प्रधान होता है। उसमें अग्नि तत्त्व अधिक होता है, इसलिए वह सुपाच्य होता है। गरिष्ठ भोजन या भारी भोजन जल-प्रधान होता है। वह न वायुप्रधान होता है और न अग्नितत्त्व प्रधान । इसलिए वह दुष्पाच्य होता है। अधिक खाने पर वह विकृतियां पैदा करता है। राजस्थान प्रान्त के कुछेक लोग बहुत मिठाइयां खाते हैं। भोज और मिठाई पर्यायवाची जैसे बन गए हैं। ऐसा भी आतिथ्य नहीं जहां मिठाई का भोजन न हो। बिना मिठाई के निमन्त्रण ही कैसा? वे अत्यधिक मिठाई खाते. दूध-दही-मक्खन खाते। सारी चीजें गरिष्ठ ही गरिष्ठ। परिणाम यह हुआ कि वे लोग जब तीस-चालीस वर्ष के होते तो बूढ़े जैसे लगने लग जाते। बुढ़ापे का अनुभव होने लग जाता। शक्तिहीनता के वे शिकार हो जाते। चालीस वर्ष बाद
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