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________________ आहार और अनुशासन पूछने वाला इतने से संतुष्ट नहीं हुआ। उसके मन में अनेक प्रश्न और उभरे। प्रश्नकर्ता स्वतंत्र होता है, उत्तरदाता परतंत्र। उसने आगे पूछा-हित आहार की परिभाषा क्या है? मैंने कहा-हित क्या है-इसकी व्याख्या बहुत लम्बी है। किस दृष्टि से कहा जाए कि हित क्या है? हमारे शरीर के महत्त्वपूर्ण अंग हैं-मस्तिष्क, हृदय, लीवर, फेफड़े, तिल्ली और गुर्दे। इन्द्रियां-आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा-ये सभी मुख्य हैं। पूरा नाड़ी संस्थान का भी अपना महत्त्व है। इन सबकी दृष्टि से एक साथ हितकर की व्याख्या नहीं की जा सकती। मस्तिष्क के लिए कुछेक पदार्थ हितकर होते हैं। नाड़ी-संस्थान के लिए भिन्न-भिन्न पदार्थ हितकर होते हैं। ज्ञानवाही नाड़ियों के लिए जो पदार्थ हितकर हैं वे क्रियावाही नाड़ियों के लिए हितकर नहीं भी होते। हृदय के लिए कोई एक पदार्थ हितकर होता है तो आंख के लिए कोई दूसरा ही पदार्थ हितकर होता है। बहुत विशाल ज्ञान करना होता है कि किस अवयव को कौन-सा पदार्थ हितकर है। कुछेक व्यक्ति एकांगी दृष्टि से हित' की बात को पकड़ लेते हैं। कई वैद्य कहते हैं-पिप्पल बहुत हितकर होता है। मंदाग्नि हो, पाचन की कमी हो तो पिप्पल का सेवन हितकर होता है। बात ठीक है। पर इसकी भी एक सीमा है। मंदाग्नि के समय पिप्पल का सेवन हितकर हो सकता है। परन्तु जब वह बीमारी मिट गई और व्यक्ति प्रतिदिन उसका सेवन करता ही रहे तो वह पिप्पल भी दोष-संग्रहकारक हो जाएगी। हित की बात देश, काल और मात्रा के साथ जुड़ी हुई होती है। देश, काल और मात्रा की उपेक्षा कर हित की बात नहीं सोची जा सकती। किसी स्थिति में नमक या क्षार खाना आवश्यक होता है। पर आदमी यदि नमक का सेवन करता ही रहे तो उसे अनेक व्याधियों का सामना करना पड़ता है। आयुर्वेद के अनुसार हृदयशूल का रोग नमक के अधिक सेवन से होता है। अधिक नमक खाने वाला खल्वाट हो जाता है, गंजा हो जाता है। नमक गुर्दे को कमजोर कर देता है। हृदय के विभिन्न रोगों में नमक कारणभूत होता है। आयुर्वेद का सिद्धांत है-पिप्पलक्षारलवणानि, नाधिकानि भोज्यानि-ये तीनों अधिक मात्रा में नहीं खाने चाहिए। तीनों हितकर हैं, यदि उनका सेवन मात्रा सहित किया जाता है। तीनों अहितकर हैं, यदि उनका सेवन मात्रा का अतिक्रमण कर किया जाता है। प्राचीन साहित्य में उल्लेख मिलता है कि सौराष्ट्र के लोग नमक का बहुत सेवन करते थे। वे चीनी के स्थान पर नमक का प्रयोग करते थे। दूध में भी नमक डालकर पीते थे। इसलिए वे पुंस्त्व को खो डालते और हृदयशूल के शिकार भी हो जाते। कहीं-कहीं नमक का ही शाक बनाया जाता है। जैसे मटर और घीये का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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