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________________ १४६ मैं कुछ होना चाहता हूं कर रहा हूं वह जबरदस्ती दबाना नहीं है, किन्तु उस वृत्ति का उदात्तीकरण करना है। उस वृत्ति को इतना विशाल बना दिया जाता है व्यापक प्रयोग के द्वारा कि जिससे सताने की बात समाप्त हो जाती है। इसमें दमन नहीं होता, जबरदस्ती नहीं रोका जाता किन्तु यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे वे हार्मोंस कम स्रावित होते हैं और अपना कम प्रभाव जताते हैं। यह सारा साधना के द्वारा संभव होता है और इसमें चैतन्य केन्द्रों का ध्यान बहुत सहयोगी बनता है। जिन लोगों में ज्यादा उत्तेजना, ज्यादा आवेग, ज्यादा कामवासना जागती है उनके लिए चैतन्य केन्द्रों का ध्यान ज्यादा उपयोगी है। ये सारी वृत्तियां नाभि के आस-पास जागती हैं। कामवासना गोनाड में जागती है और उत्तेजना एड्रीनल के पास। उनके स्राव जब अधिक बढ़ते हैं तब यह अधिक वाली बात होती है। अन्यथा जीवन में जितना अपेक्षित और आवश्यक है उतना हो जाता है और शेष ध्यान दूसरी बात में रहता है। अब एक. स्थिति यह बन जाती है कि काम की तनाव इतना बढ़ जाता है कि उसके अलावा कुछ दिखता ही नहीं है। बहुत सारे लोग इस प्रकार पागल बन जाते हैं कि जिसको चाहते हैं उसका संयोग नहीं मिलता है तो आत्महत्या कर लेते हैं। न जाने कितने युवक-युवतियां आत्महत्या करते होंगे। और भी न जाने कितने अपराध और कितनी समस्याएं पैदा होती होंगी। इसका कारण है कि उनमें नियंत्रण करने की क्षमता नहीं है। पानी तालाब में उतना ही आए जितना उसमें समा सकता है। ऐसी स्थिति होनी चाहिए कि नाले को बन्द किया जा सके। बांध है। उसमें उतना ही पानी आए जितनी उसकी क्षमता है अतिरिक्त पानी आ जाए तो बांध टूटने का खतरा भी पैदा हो जाता है। यह माना गया है कि सामान्य आदमी में यह भाव उतना ही आए जितना उसमें शारीरिक, मानसिक आदि दृष्टियों से हानि न पहुंचाते हुए अपना काम कर सके। जिन लोगों ने ब्रह्मचर्य के इन पहलुओं पर शारीरिक दृष्टि से, मानसिक दृष्टि से, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से विचार नहीं किया वे ब्रह्मचर्य के बारे में बहुत भ्रांतियां पालते हैं। शारीरिक दृष्टि से जैसे मनोविज्ञान का सिद्धांत हैं कि यदि आदमी कामभोग का सेवन नहीं करता है तो भी शरीर स्वस्थ नहीं रहता। यह एक बड़ी भांति है। जो लोग ब्रह्मचारी रहते हैं वे बहुत स्वस्थ रह सकते हैं। पर ठीक यही बात है कि उसके साथ मानसिक स्तर पर विचार करना होगा कि शरीर से वह अब्रह्मचर्य का सेवन नहीं कर रहा है पर मन से निरन्तर उसका सेवन कर रहा है तो वह शरीर से बच रहा है किन्तु मन बिलकुल खुला है तो पागलपन जरूर आ जाएगा, कठिनाई पैदा होगी। उसके साथ-साथ जब शारीरिक संयम करना है तो पहले मानसिक संयम करने की बात सीखनी होगी कि मन से कैसे संयम करें और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org WW
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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