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मैं
कुछ
होना चाहता हूं
उसकी साधना के कुछ सूत्र हैं । उन सूत्रों का आलम्बन लेने पर सहज सुख उपलब्ध होता है और उससे भी ज्यादा सुख उपलब्ध हो जाता है। ध्यान की प्रक्रिया में अन्तर्यात्रा का प्रयोग किया जाता है । अन्तर्यात्रा का अच्छा अभ्यास होने पर, सुषुम्ना में चित्त की ऊपर और नीचे की यात्रा होने पर ऐसे सुख का अनुभव होता है कि जैसा शायद भोग में भी नहीं होता ।
दर्शनकेन्द्र पर बालसूर्य का ध्यान करते-करते ऐसे स्पंदन जागते हैं, ऐसे सुख का अनुभव होता है कि वैसा सुख काम- - सेवन में भी नहीं होता। अगर हम इसके वैज्ञानिक कारण को समझ लें तो बात बहुत स्पष्ट हो जाएगी । सुख का अर्थ होता है - मन का संकल्प और विद्युत् - रसायन का योग होना । वास्तव में जो सुख या दुःख का अनुभव होता है वह एक प्रकार की विद्युत्-धारा के साथ हमारे मन का योग होने से होता है। एक प्रकार के रसायन के साथ हमारा मन जुड़ता है तो सुख का संवेदन बन जाता है। दूसरे प्रकार की विद्युत्-धारा या दूसरे प्रकार के रसायन के साथ मन जुड़ता है तो दुःख बन जाता है। योग होना मन का - यह एक बड़ी बात है। हम अपने भीतरी रसायनों के साथ, विद्युत् प्रवाहों के साथ अपने मन को जोड़ सकें तो बहुत सुख उपलब्ध हो सकता है
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दो ग्रन्थियां खोजी गई हैं सिर के पीछे, जिसे गुप्ति का भाग कहा जाता है। वहां छोटी-छोटी दो ग्रन्थियां हैं । वे परस्पर सटी हुई हैं। आज का वैज्ञानिक विश्लेषण यह है कि एक ग्रन्थि जाग जाए तो फिर चाहे जितनी भयंकर घटना घटित हो जाए आदमी को कभी दुःख नहीं होगा और दूसरी ग्रंथि जाग जाए तो चाहे जितनी अनुकूलता मिल जाए, वैभव मिल जाए, सम्पदा मिल जाए, भोग मिल जाए उसे कभी सुख नहीं होगा । हमारी धारणा यह है कि सुख और दुःख हमें बाहर से मिलता है, किन्तु सचाई यह है कि इनका संवेदन भीतर में होता है । पदार्थ हो चाहे न हो, कोई फर्क नहीं पड़ता । पदार्थ होने पर भी सुख-दुःख मिल सकता है 1 मिलेगा तभी जब इस प्रकार के प्रकम्पन और स्पंदन हमारे मन में जाग जाएंगे, उस प्रकार की तरंग जागेगी और विद्युत्-धारा का योग हो जाएगा। यह हमारी नितान्त संवेदना की प्रक्रिया है । हम जो नियमन करेंगे, संयम करेंगे, वह पदार्थ का नहीं करेंगे। हम संवेदना का नियमन करेंगे। इस संवेदन के रहस्य को समझ लेना ही ब्रह्मचर्य को समझ लेना है । जिस व्यक्ति ने संवेदन को नहीं समझा वह इस रहस्य को नहीं समझ सकता। वह केवल बाहरी वस्तु पर भटकता रहेगा, बाहरी पदार्थ पर उलझता रहेगा। यह सही है कि बाहरी पदार्थ भी निमित्त बनता है, उस संवेदना को जगाने का निमित्त बनता है किन्तु सुख - दुःख देने का निमित्त नहीं बनता ।
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