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मैं मानसिक संतुलन चाहता हूं
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करना सीखे। हमारे पास एक व्यक्ति आया जो बड़ा सटोरिया था। आकर बोला-मेरे लड़के को सट्टा न करने का संकल्प दिला दें। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. अरे भाई! तुम तो इतना सट्टा करते हो और तुम यह चाहते हो? वह बोला-हां, मैं जानता हूं कि सट्टा करने वाला कितना दु:ख भोगता है। मैं चाहता हूं कि मेरा लड़का तो कम से कम इसमें न फंसे-यह कैसे होगा? तुम तो करते जाओ और तुम्हारा लड़का इसमें न फंसे यह कैसे संभव होगा? यह बात समझ में नहीं आती। अपना आचरण नहीं बदलता, पर अपने लड़के को, अपनी पत्नी को बचाना चाहता है। इसके पीछे एक ही कारण है-आवेश कम नहीं हो पा रहा है। उत्तेजना कम नहीं हुई है। एक आवेश वायु का होता है, जिसे आयुर्वेद के ग्रंथ में, चरक और सुश्रुत में, भूतावेश भी कहा गया है। बहुत सारे आवेश वायु के होते हैं। वे भूत के आवेश मान लिए जाते हैं और कभी-कभी प्रेतात्मा का आवेश-प्रवेश हो जाता है। ये दो आवेश तो होते ही हैं और इनसे भी बड़ा आवेश होता है-मूर्छा का। आदमी में इतनी घनी मूर्छा होती है कि खुली आंख होने पर भी देख नहीं पाता। कान खुले हैं पर सुन नहीं पाता, पता ही नहीं चलता। यह स्थिति ध्यान के द्वारा समाप्त की जा सकती है। मूर्छा को ध्यान के द्वारा ही तोड़ा जा सकता है और जब तक मूर्छा नहीं टूटती. यह मानसिक संतुलन नहीं आ सकता। मानसिक असन्तुलन का बड़ा कारण है-उत्तेजना। दूसरा कारण है-आग्रह । मनुष्य में आग्रह होता है, बात की पकड़ होती है। एक बात को पकड़ लेता है। दु:ख पाता है, फिर भी छोड़ता नहीं है। संतुलन को खो देता है। अनुभव करता है कि अच्छा नहीं है फिर भी बात पकड़ ली सो पकड़ ली। मैं ऐसा कमजोर नहीं हूं कि पकड़ ली और छोड़ दूं । छोड़ने वाले वे दूसरे लोग होते है। मैं कोई बनिया नहीं हूं कि मूंछ ऊंची हो या नीची हो। मैं तो पकड़ का आदमी हूं। पकड़ को कभी नहीं छोड़ता।
यह आग्रह भी बड़ा असंतुलन पैदा करता है. बड़े असमंजस में डाल देता है। आदमी आया और रुपया चुकाना था। सामने लाकर साठ रुपये रख दिए। उसने पूछा कि भाई! मैंने सत्तर रुपये दिए थे, पैंतीस एक बार और पैंतीस एक बार। ये साठ कैसे लाए? उसने कहा-नहीं, पैंतीस-पैंतीस साठ होते हैं। उसने कहा-नहीं पैंतीस और पैंतीस सत्तर होते हैं। उसने कहा-तुम हजार बार कहो, पर मैं तो नहीं मानता। मैं तो यही मानूंगा कि पैंतीस और पैंतीस साठ होते हैं और ये साठ रुपये मैंने तुम्हारे ला दिए। क्या किया जाए? बड़े असमंजस की स्थिति बन जाती है।
आग्रह बहुत असंतुलन पैदा करता है। आप सूक्ष्मता से ध्यान देंगे तो पता
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