________________
मैं कुछ होना चाहता हूं
आवश्यकता नहीं होती। मन के सध जाने पर शारीरिक समस्याएं भी कम होती हैं। मन के सध जाने पर वाचिक समस्याएं भी कम होती हैं। जब मानसिक उत्तेजना होती है तो वचन की जटिलता बढ़ती है, वाणी का दुरुपयोग होता है। जब मन संतुलित हो जाता है तो वाणी की समस्या अपने आप निरस्त हो जाती है। अलग से प्रयत्न करना आवश्यक नहीं होता। बोलेगा, बहुत संतुलित बोलेगा। असहिष्णुता नहीं होगी। अधैर्य नहीं होगा। इतना अधैर्य होता है आदमी में कि सामने वाला पूरी बात कहता नहीं, पहले ही वह उबल पड़ता है। अरे! सुनो तो सही कि अगला क्या कहना चाहता है। किसे अवकाश है कि पूरी बात सुने! पहले ही उबल पड़ता है, चाहे सामने वाला व्यक्ति अच्छी बात कहना चाहता हो। पर पता ही नहीं चलता। तो यह सारा मानसिक असंतुलन के कारण होता है। यदि हम अपनी वैयक्तिक समस्याओं, सामाजिक समस्याओं, पड़ोसी की समस्याओं-इन सारी समस्याओं का अध्ययन करें तो पता चलेगा कि इन समस्याओं को बढ़ाने में हमारा मानसिक असंतुलन एक ईंधन का काम कर रहा है। ऐसा ईंधन है जो निरन्तर आग को प्रज्वलित रख रहा है। यह ज्योति बुझती नहीं, शाश्वत ज्योति है। कुछ ज्योतियां तो ऐसी हैं जो कि जलती हैं और बुझ जाती हैं। आज की बिजली का तो भरोसा ही नहीं कि दिन में कितनी बार आए और कितनी बार चली जाए। पर यह मानसिक असंतुलन की बिजली तो ऐसी है कि कभी जाती ही नहीं, हमेशा अपना चमत्कार दिखाती रहती है। यह बहुत बड़ी समस्या है मानसिक असंतुलन की। क्यों होती है, इस पर भी कुछ मीमांसा करें।
इसका एक कारण है-उत्तेजना। हमारी आवेशात्मक और आवेगात्मक प्रवृत्तियों पर हमारा नियत्रण नहीं है। हर बात में उत्तेजना आ जाती है। ध्यान का अर्थ बहुत महत्त्वपूर्ण है कि हम अपने आप पर नियंत्रण करने की स्थिति में आ जाते हैं। ध्यान से सारे आवेग समाप्त हो जायेंगे, ऐसा मैं नहीं कहना चाहता। यह तो बहुत आगे की बात हो सकती है। पर यह भी कम बात नहीं है कि जब चाहें तब दरवाजे को बन्द कर सकते हैं और जब चाहें तब उस पर ताला लगा सकते हैं। वह भी तो बहुत बड़ी बात है। इसीलिए दरवाजे का, ताले का, कुंजी का विकास हुआ कि आदमी सुरक्षित रह सके। यह अपनी सुरक्षा का एक बहुत बड़ा माध्यम बनता है।
हमारी एक ऐसी चेतना जाग जाए कि आवेश आने की स्थिति में हम तत्काल दरवाजा बन्द कर दें और शान्त रह सकें। यह कम बात नहीं है, बहुत महत्त्वपूर्ण बात है और केवल मनुष्य ही ऐसा कर सकता है। पशु नहीं कर सकता। पशु के सामने उत्तेजना की स्थिति आएगी, वह उत्तेजना में चला जाएगा। चाहे भैंस हो, भैंसा हो, सूअर हो, रीछ हो, कोई भी हो, वे ऐसे आवेश में आएंगे, फुफकारने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org