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________________ मैं मानसिक संतुलन चाहता हूं मूल्य बढ़-चढ़ जाता I हमारे पास तीन शक्तिशाली साधन हैं। कार्य संचालन के लिए - शारीरिक क्षमता, वाचिक क्षमता और मानसिक क्षमता । यदि हम समस्या की दृष्टि से विचार करें तो भी शरीर एक समस्या है, वचन भी एक समस्या और सबसे जटिल समस्या है हमारा मन । शरीर इसलिए समस्या है कि बीमारियां सबसे अधिक शरीर में पैदा होती हैं । बुढ़ापा शरीर पर उतरता है। बुढ़ापा एक समस्या है। बीमारी एक समस्या है । दुःख का संवेदन एक समस्या है। वह शरीर के माध्यम से होता है तो शरीर भी एक समस्या है। वाणी भी समस्या है। जिस वाणी के द्वारा बहुत सारे कार्य सधते हैं, पर कभी-कभी ऐसा होता है कि इस वाणी के द्वारा बहुत सारी समस्याएं झेलनी पड़ती हैं। हम इतिहास को देखें, पुरानी घटनाओं को पढ़ें और जीवन व्यवहार का अनुभव करें तो पता चलेगा कि वाणी के द्वारा कब, किस प्रकार, कैसी समस्याएं जटिल बनी हैं? जब अविवेक होता है वाणी का, तब बड़ी समस्या पैदा हो जाती है । एक वचन मुंह से निकल जाता है तो महासंग्राम जैसी स्थिति बन जाती है। एक समस्या है । इससे जटिल समस्या है - मन । जिसने मन को मना लिया, उसने शरीर को भी मना लिया और वाणी को भी मना लिया। दोनों मना लिए गए। मन स्वस्थ होता है, संतुलित होता है शरीर की बीमारियां भी बहुत कम हो जाएंगी। आज का युग 'साइकोसोमेटिक डिजीजेज' का युग है। शारीरिक बीमारियां कम होती हैं, अधिक मनोकायिक बीमारियां होती हैं। मानसिक बीमारियां ही शरीर पर उतरती हैं। आदमी दवा लेता चला जाता है । वह सोचता ही नहीं है और शायद आजकल के डॉक्टर भी कम ध्यान देते हैं। रोगी को इतनी तेज दवाइयां देते हैं, इतनी भारी डोज देते हैं, इतनी एण्टीबायोटिक्स के प्रयोग चलते हैं कि प्रतिक्रिया होती चली जाती है। एक बार जो दवा के चक्कर में फंस जाता है वह तो फंसता ही जाता है । फिर तो फंसते ही चले जाओ आगे से आगे । ऐसी अनवस्था हो जाएगी. कि जिसका कहीं अन्त हीं नहीं आएगा। जिस व्यक्ति ने मन को साधा है उसके दवाइयां भी कम हो जाती हैं । हमारा अनुभव है कि शिविर में आने वाले लोग दवाइयों की पेटियां भर-भर कर लाते हैं। किन्तु जब वापस जाते हैं तो पेटियां वैसी की वैसी उनके साथ सुरक्षित चली जाती हैं। दवाइयों की आवश्यकता नहीं पड़ती। जो दवाई लेने के लिए साधन सामग्री चाहिए, वह उनको मिलती नहीं, तब दवाई की जरूरत क्या हो सकती है ? जहां मानसिक प्रशिक्षण और मन को साधने की क्रिया होती है और मन स्वस्थ होता है, वहां बेचारे शरीर को फिर दवाई की जरूरत ही क्या है ? कोई Jain Education International १३१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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