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________________ मैं कुछ होना चाहता हूं में परिष्कार चाहता है । हम सामाजिक प्राणी हैं इसलिए आचार से पहले व्यवहार की बात हमारे सामने आती है। दूसरे के प्रति जो हमारा व्यवहार है वह एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न है । उसमें परिष्कार चाहते हैं । आचार अपना भी हो सकता है, दूसरे के प्रति भी हो सकता है । उसमें परिष्कार चाहते हैं । स्वभाव व्यक्तिगत होता है, मनुष्य उसमें परिष्कार चाहता है । मनुष्य में तीन दुर्बलताएं होती हैं- क्रूरता, विषमता और स्वयं को हानि पहुंचाने वाली प्रवृत्ति । ये तीन बड़ी दुर्बलताएं है। पहली बात है क्रूरता । मैं व्यवहार में परिष्कार चाहता हूं- इसका अर्थ है कि व्यवहार में क्रूरता है वहां कोमलता, मृदुता चाहता हूं। करुणा चाहता हूं। मेरा व्यवहार दूसरों के प्रति करुणा से भरा हुआ हो 1 क्रूरता का अंश धुल जाए, धुलता चला जाए । क्रूरता समाप्त हो जाए। पूरी क्रूरता समाप्त हो जाए। आज की सारी विसंगतियां, आज के सारे विरोधाभास, आज की सारी समस्याएं-चाहे आर्थिक क्षेत्र में हैं, चाहे राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में हैं उनका मूल उत्स है- मनुष्य की क्रूरता । क्रूरता के कारण ही आर्थिक कठिनाइयां पैदा हो रही हैं। आज जो आर्थिक समस्याएं हैं उनके मूल में सबसे बड़ा कारण है- मनुष्य की क्रूरता । क्या क्रूरता के बिना कोई आदमी किसी को धोखा दे सकता है ? किसी को लूट सकता है? मिलावट कर सकता है? रिश्वत ले सकता है? ये सारी बातें नहीं हो सकतीं। एक क्रूरता ऐसी प्रभावी हो गयी कि सब कुछ खाओ तो भी हजम हो जाता है। सब बुराइयां हजम हो रही हैं । कभी सोचने का अवसर ही नहीं मिलता कि ऐसा नहीं होना चाहिए। एक बीमार पड़ा है मृत्यु- शय्या पर । पर जब तक अधिकारियों की पेट पूजा नहीं हो जाती तब तक हॉस्पीटल में भर्ती होना भी कठिन हो जाता है। एक आदमी को आवश्यक कार्य से कहीं यात्रा करनी है, पर जब तक पूरी भेंट - पूजा नहीं दे देता तब तक टिकिट ही नहीं मिलती। एक व्यवसायी गायों को, भैंसों को बिना मौत मार सकता है । चारे में ऐसी मिलावट करता है कि चारा खाते ही पशु मरने लग जाते हैं। क्या क्रूरता के बिना ऐसा संभव है? क्या आटे में मिलावट, मसालों में मिलावट, दाल में मिलावट क्रूरता के बिना संभव है? कभी संभव नहीं है । यह सारी आर्थिक भ्रष्टाचार की कहानी, क्रूरता की कहानी है । हमारा व्यवहार शुद्ध हो। अणुव्रत आन्दोलन आचार - शुद्धि और व्यवहार शुद्धि का आन्दोलन है। दूसरे के प्रति हमारा व्यवहार क्रूरता से मुक्त हो और यदि क्रूरता से मुक्त होता है तो अनेक समस्याएं अपने आप सामाहित हो जाती हैं, फिर उनके समाधान खोजने की आवश्यकता नहीं होती । ११३ दूसरी बात है - आचार में विषमता न हो । विषमता हमारी दूसरी समस्या / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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