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________________ इच्छा और अनुशासन चाहिए। इसके आधार पर समाज ने एक सूत्र दिया-इच्छा-परिष्कार। इच्छा का परिष्कार करना चाहिए। इच्छाएं अपरिष्कृत होती हैं। यदि इच्छा के अनुसार आदमी चलता चले तो हमारा यह सभ्य समाज आदिवासियों का समाज बनकर रह जाएगा। व्यक्ति के मन में अनेक प्रकार की इच्छाएं जाग सकती हैं। यदि वह सब इच्छाओं को क्रियान्वित करता है तो समाज में कोई जी नहीं सकता। मन में मारने की इच्छा जागती है और वह किसी को मार डालता है। मन में धन लूटने की इच्छा जागती है, दूसरे के घर पर कब्जा करने की इच्छा जागती है और वह धन लूटता है, दूसरे के घर पर कब्जा करता है। पूछने पर उसका उत्तर होता है-मेरी इच्छा हुई और मैंने वैसा कर डाला। कौन है मुझे रोकने वाला, कहने वाला? इस स्थिति में न्याय की सारी व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हो जाती हैं। इसलिए समाज ने इच्छा-परिष्कार का सूत्र दिया। इच्छा का परिष्कार या शोधन होना चाहिए। इच्छा वही मान्य हो सकती है जो दूसरों की इच्छा में बाधक न बने, दूसरों को क्षति न पहुंचाए, बाधा न पहुंचाए। इच्छा के परिष्कार के बिना सभ्य समाज का निर्माण नहीं हो सकता। कभी-कभी परिष्कृत इच्छाएं भी खतरा पैदा कर देती हैं। समाज उनको मान्य कर लेता है, पर वह उन खतरों से बच नहीं सकता। समाज द्वारा यह मान्य है कि पति-पत्नी का संगम हो सकता है। यह व्यक्ति की परिष्कृत इच्छा का नियम है। किन्तु आदमी यदि इसको सर्व सामान्य बनाकर इच्छापूर्ति करता चला जाए तो वह वासना के भंवर में गिरकर अनेक रोगों का शिकार हो सकता है। उसकी सारी कार्यजाशक्ति नष्ट हो सकती है। इस परिस्थिति में उसे इच्छा के परिष्कार से आगे भी कुछ सोचना चाहिए। __पढ़ना है। स्वयं को अध्ययन करना है। दूसरों को कोई आपत्ति नहीं हो सकती। किन्तु कोई व्यक्ति यदि चौबीस घंटा पढ़ता ही चला जाए तो उसकी आंखें खराब हो जाएंगी और मस्तिष्क विकृत हो जाएगा। इच्छा का भी परिष्कार होना चाहिए। परिष्कृत इच्छा के लिए भी संयम और अनुशासन आवश्यक होता है। आयुर्वेद में एक सिद्धांत के तीन अवयवों की चर्चा है। वे तीन अवयव हैं-योग, अयोग और अतियोग। अयोग हो तो कोई बात पनपती ही नहीं। किसी व्यक्ति को शिक्षा का अयोग हो तो वह नितान्त मुर्ख ही बना रहेगा। अतियोग भी हानिकारक होता है। कोई व्यक्ति रात-दिन पढ़ता ही रहे तो शक्ति-शून्यता आ जाएगी। वह कुछ भी नहीं कर पाएगा। न अयोग हो और न अतियोग हो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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