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________________ ११० मैं कुछ होना चाहता हूं शराब के घड़े से एक-एक चुल्लू शराब मुंह में ले और उसे तत्काल थूक दे।' सभी शिष्यों ने वैसा ही किया। घड़ा खाली हो गया। गुरु ने फिर एक-एक शिष्य से पूछा-किसी को नशा आया? सभी शिष्य बोले-गुरुदेव ! नशा कैसे आता? नशा तब आता जब शराब गले के नीचे उतरती। हमने तो उसे मुंह में लेकर ही थूक दिया था। उसे गले के नीचे उतारा ही नहीं फिर नशा कैसे आता? गुरु बोले-प्रश्न का उत्तर आ गया? शिष्य बोले-समझ में नहीं आया। गुरु बोले-आज घड़े भर-भर कर धर्म किया जा रहा है और कुल्ले के रूप में थूका जा रहा है। वह गले के नीचे उतरता ही नहीं, वह हृदय का स्पर्श करता ही नहीं। तब उसके परिणाम कैसे आ सकते हैं? जीवन में रूपानतरण कैसे घटित हो सकता है? धर्म का भी अपना नशा होता है। वह कैसे आए? जब तक धर्म का कथन गले के नीचे नहीं उतरता तब तक उसका असर नहीं हो सकता। धर्म को गले उतारने के लिए बुद्धिबल और तर्कबल अपेक्षित होता है। दोनों का समन्वय होना जरूरी है। मैं उसी को दर्शन मानता हूं और उसी को दार्शनिक मानता हूं, जिसमें साक्षात्कार तथा बौद्धिक और तार्किक बल दोनों का समन्वय होता है। इस प्रकार मनुष्य की चेतना का विकास अनेक दिशाओं में हुआ है, अत: उसके लिए जीवन और विज्ञान-दोनों पक्ष आवश्यक है। मनुष्य केवल प्राणी ही नहीं है। उसमें केवल प्राणवत्ता ही नहीं है, कोरा जीवन ही नहीं है। जीवन के साथ-साथ उसमें विज्ञान की क्षमता, अनुभव और विवेक की क्षमता और प्रत्याख्यान की क्षमता भी है। मनुष्य के लिए जीवन-विज्ञान का चुनाव किया जा सकता है। पशु-पक्षी के लिए इस विषय का चुनाव नहीं किया जा सकता । __आज यह बहुत आवश्यक प्रतीत होता है कि शिक्षक-वर्ग में ध्यान और ध्यान के साथ जीवन विज्ञान का समन्यवय हो। इसी आधार पर वे नया चिन्तन देने में सक्षम हो सकते हैं। अभी-अभी राजस्थान के एजुकेशन कमीश्नर ए० के० भटनागर बैंकाक जाकर आए हैं। बता रहे थे कि वहां की सरकार अपने कर्मचारियों के लिए ध्यान की व्यापक व्यवस्था पर चिंतन कर रही है। सभी देशों में यह चिन्ता व्याप्त है कि आदमी के व्यवहार को, आचरण को कैसे बदला जाए। आज शिक्षकों को ध्यान शिविर में भाग लेते देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए और माना कि यह सद्यस्क अपेक्षा है। आज व्यक्ति, समाज, देश और राष्ट्र में जो विभिन्न प्रकार की चिन्ताएं व्याप्त हैं उससे मुक्त होने के लिए नए चिन्तन की जरूरत है, नए दर्शन की जरूरत है। वह नया चिन्तन और नया दर्शन ध्यान और कर्म-दोनों का समन्वय ही हो सकता है। वह जीबन-विज्ञान और पुस्तकीय ज्ञान-दोनों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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