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संकेतिका
__इस ग्रंथ के कर्ता हैं विक्रम की ८-९वीं शताब्दी के महान् आचार्य श्री हरिभद्रसूरि। ये ब्राह्मण कुल में जन्में, पर जैन साध्वी याकिनी महत्तरा से प्रतिबुद्ध होकर जैन प्रव्रज्या ग्रहण की। इन्होंने छोटे-बड़े शताधिक ग्रंथों की रचना कर जैन साहित्य भंडार को भरा। कहा जाता है कि जब इनके दो प्रिय शिष्यों का वियोग हो गया तब इन्होंने अपनी पूरी शक्ति का नियोजन साहित्य निर्माण में किया। इन्होंने योग विषयक अनेक ग्रंथ लिखे। उनमें 'योगदृष्टिसमुच्चय', 'योगबिन्दु', 'योगविंशिका' आदि मुख्य हैं। अभी कुछ ही वर्षों पूर्व 'योगशतक' ग्रंथ की हस्तप्रति प्राप्त हुई और आज यह स्वोपज्ञ टीका के साथ प्रकाशित है। इसमें सौ श्लोक हैं। इनमें योग के अधिकारी, अनधिकारी की स्फुट चर्चा है तथा शैक्ष और परिपक्व साधक को किन-किन अवलंबनों का सहारा लेना होता है, इसका दिग्दर्शन है। योग साधक की आहार-चर्या पर भी इसमें अनेक निर्देश हैं।
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