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१. कायोत्सर्ग प्रकरण : १९ इसलिए मुनि माया-रहित होकर, विशेष रूप से अपनी अवस्था और बल के अनुरूप खड़े रहकर स्थाणु की भांति निष्प्रकंप होकर कायोत्सर्ग करे।
७०. तरुणो बलवं तरुणो अ दुब्बलो थेरओ बलसमिद्धो।
थेरो अबलो चउसुवि भंगेसु जहाबलं ठाई।। मुनि चार प्रकार के होते हैं१. तरुण और बलवान्। २. तरुण और दुर्बल। ३. स्थविर और बलवान्। ४. स्थविर और दुर्बल। इन चारों विकल्पों में मुनि यथाशक्ति कायोत्सर्ग करता है।
७१. पयलायइ पडिपुच्छइ कंटयवियारपासवणधम्मे।
नियडी गेलन्नं वा करेइ कूडं हवइ एयं॥
कायोत्सर्ग करते समय मुनि माया के वशीभूत होकर नींद का बहाना करता है, सूत्र या अर्थ या दोनों की पृच्छा प्रारंभ कर देता है, कांटा निकालने लगता है, मल-मूत्र विसर्जन के लिए चला जाता है, धर्मकथा में प्रवृत्त होता है रोगी होने का बहाना करता है-ये सब कूट अनुष्ठान हैं।
७२. पुव्वं ठंति य गुरुणो उस्सारियंमि पारेंति।
ठायंति सविसेसं तरुणा उ अनूणविरिया उ॥ शिष्य गुरु के कायोत्सर्ग में स्थित होने पर स्वयं स्थित हो, उनके सम्पन्न करने पर स्वयं उसे सम्पन्न करे और जो शक्ति-सम्पन्न तरुण हों वे विशेष रूप से कायोत्सर्ग करें।
७३.
चउरंगुल मुहपत्ती उज्जूए डब्बहत्थ रयहरणं। वोसट्टचत्तदेहो काउस्सग्गं करिज्जाहि॥
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