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(१२) ६. स्वरूपसम्बोधन-यह विक्रम की ७वीं शताब्दी के महान् आचार्य
अकलंकदेव की लघु कृति है। इसमें केवल २५ श्लोक हैं। इसके संस्कृत टीकाकार हैं-पंडित आशाधरजी। एक टीका है अज्ञातनामा। प्रकाशक है
शांतिसागर जैन सिद्धांत प्रकाशिनी संस्था, शांतिवीर नगर, सन् १९६७। ७. ज्ञानसार चयनिका-विक्रम की १६-१७वीं शताब्दी के महान् विद्वान्
उपाध्याय यशोविजयजी ने बत्तीस अष्टकों में 'ज्ञानसार' ग्रंथ का प्रणयन किया। मूलग्रंथ श्री विश्वकल्याण प्रकाशन ट्रस्ट महेसाणा से प्रकाशित है। इसी ग्रंथ से चयनित है यह 'ज्ञानसार चयनिका।'
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