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________________ ग्रंथ परिचय १. कायोत्सर्ग प्रकरण-आवश्यकनियुक्ति भाग २ में १३६ श्लोकों (१४१८ से १५५४) में कायोत्सर्ग प्रकरण का निरूपण है। हमने इनमें से ८२ श्लोकों का समावेश इस कायोत्सर्ग प्रकरण में किया है। इसके रचयिता हैं आचार्य भद्रबाहु द्वितीय। २. ध्यानशतक-आवश्यकनियुक्ति भाग २, पृष्ठ ६१ से ८१ तक ध्यान शतक के १०५ श्लोक हारिभद्रीया टीका सहित प्रकाशित हैं। आचार्य हरिभद्र ने इसे 'शास्त्रान्तरं' मानकर उद्धत किया है। उन्होंने इसके रचयिता का नाम निर्दिष्ट नहीं किया है। 'बृहत् जैन साहित्य का इतिहास', भाग ४, पृष्ठ २५० में ध्यानशतक का १०६ वां श्लोक उद्धृत है। उसमें इसे जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण की कृति माना है। कुछ विद्वान् इसे नियुक्तिकार भद्रबाहु की कृति मानते हैं। यह ग्रंथ 'वीर सेवा मन्दिर' दरियागंज, दिल्ली से सन् १९७६ में 'ध्यानशतक तथा ध्यान-स्तव' के शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। ३. योगशतक-यह विक्रम की आठवीं-नौवीं शताब्दी के महान् आचार्य श्री हरिभद्र की कृति है। मुनिराज श्री पुण्यविजयजी द्वारा संपादित तथा लालभाई दलपतभाई, भारतीय संस्कृत विद्यामंदिर अहमदाबाद द्वारा सन् १९६५ में प्रकाशित है। ४. समाधिशतक-यह विक्रम की छठी शताब्दी के आचार्यश्री पूज्यपाद स्वामी द्वारा रचित है। इसके संस्कृत टीकाकार हैं विक्रम की १२-१३ शताब्दी के विद्वान् आचार्य प्रभाचन्द्र। यह प्रकाशित है-जीवराज जैन ग्रंथमाला, सोलापुर-सन् १९७४। इसमें १०५ श्लोक हैं। ५. इष्टोपदेश-इसके रचयिता हैं आचार्यश्री पूज्यपाद। इसके टीकाकार हैं-विक्रम की १३ शताब्दी के विद्वान् पंडित आशाधरजी। इसमें ५२ श्लोक है। प्रकाशक है-परमश्रुत प्रभावक मंडल, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास, सन् १९७३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003079
Book TitleJain Yoga ke Sat Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size5 MB
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