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मानवीय स्वभाव
चक्षुष्मान् !
कामना और प्राणी- दोनों में घनिष्ट संबंध है। प्राणी हो और कामना न हो, यह कब संभव है ? धर्म के उपदेष्टा उपदेश देते रहते हैं-'कामना का परित्याग करो।' बहुत कम सार्थक हो रहा है यह उपदेश ।
कामना का चीर बढ़ता ही चला जा रहा है। ऐसा क्यों होता है ? उसका सूत्र प्रस्तुत सूत्र में है, जिसमें कोई उपदेश नहीं है, केवल मानवीय स्वभाव का चित्रण है।
यदि बदलना है तो पहले सचाई को स्वीकार करो । महावार की वाणी में सत्य की स्वीकृति स्पष्ट है
__कामकामी खलु अयं पुरिसे। यह पुरुष काम-कामी है—मनोज्ञ शब्द और रूप की कामना करने वाला है।
1 सितम्बर, 1997 तेरापंथ भवन गंगाशहर
अपथ का पथ
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