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मुक्ति इसी क्षण में
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चक्षुष्मान् !
'तुम एक क्षण में मुक्त हो सकते हो' - आत्म साधक के लिए इससे अधिक सुन्दर और हृदयग्राही वचन कोई नहीं हो सकता ।
साधना का मार्ग बहुत लंबा है, बहुत श्रम साध्य है, बहुत तपस्या से प्राप्य है।
यह दीर्घकाल का विकल्प उत्साह को कुछ मंद करता है।
इस अवस्था में यह स्वर कान में गूंजे- 'तुम क्षण भर में मुक्त हो सकते हो। कितना आह्लादकारी होता है वह पल । अनुभव की बात शब्द नहीं बता सकते।
यह वचन सशर्त है । तुम क्षण भर में मुक्त हो सकते हो, यदि अरति से मुक्त हो जाओ।
जिस क्षण अरति का निवर्तन, उसी क्षण मुक्ति । यह है जीवन-मुक्ति।
शरीर-मुक्त हमारे प्रत्यक्ष नहीं होता । जीवन-मुक्त हमारे बीच रहता है। उसकी एक झलक जीवन को संवारने के लिए पर्याप्त है। उसका व्यवहार और आचरण सहज होता है। उसमें से निकलता है नियम, अनुशासन और व्रत ।
इस चिन्तन की समग्रता को प्रतिध्वनित कर रहा है महावीर का यह वचन
खणंसि मुक्के । तुम क्षण में मुक्त हो सकते हो ।
1 दिसम्बर, 1995 जैन विश्व भारती
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अपथ का पथ
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