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चक्षुष्मान् !
शब्द ससीम, तात्पर्य असीम ।
भाषा सदृश, परिभाषा विसदृश ।
शब्दकोश कहता है- जिसमें धारण करने की क्षमता होती है, वह मेधावी है ।
आगम के व्याख्याकार कहते हैं- जो मर्यादाशील है, वह मेधावी है।
वह है मेधावी
महावीर का वक्तव्य इनसे भिन्न है । वे आत्मा को सामने रखकर बोलते हैं इसलिए उनकी बात शब्दकोश और परिभाषा ग्रन्थ से परे होती है ।
जिसमें धारणा की क्षमता है और जो मर्यादा के प्रति जागरूक है, किन्तु अरति की व्यथा से मुक्त नहीं है, महावीर कहते हैं- वह मेधावी नहीं है ।
जिसमें अरति को दूर करने की चेतना जागृत नहीं है, वह बहुत कुछ जानकर भी अज्ञ है। आत्मदर्शी उसे मेधावी कैसे मानेंगे ?
आत्मा में सहज सुख का अथाह समुद्र है ।
जो अपने कंठ में सुख की प्यास लिए घूम रहा है, 'पानी में मीन पियासी' को चरितार्थ कर रहा है, वह मेधावी कैसे होगा ?
इस सचाई को सामने रखकर, आत्मा के शिखर पर आरोहण कर महावीर ने कहा
1 नवम्बर 1995
जैन विश्व भारती
अपथ का पथ
अरई आउट्टे से मेहावी
जो अरति का निवर्तन करता है, वह मेधावी है ।
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