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________________ pes परिज्ञा से ढूढनी है मूख्छौं - चक्षुष्मान् ! सोपान पंक्ति से आदमी ऊपर भी चढ़ता है, नीचे भी उतरता है। मूर्छा एक सोपान पंक्ति है। उतार और चढ़ाव—दोनों उसके सहारे चलते हैं। जब तक मूर्छा है तब तक आरोह और अवरोह का क्रम बना रहता है। परिज्ञा के बिना मूर्छा नहीं टूटती और मूर्छा टूटे बिना आरोहअवरोह का क्रम बन्द नहीं होता। पदार्थ ज्ञान कितना ही बढ़ जाए, वह मूर्छा के चक्र को नहीं तोड़ पाता । उसको तोड़ने का उपाय है आत्म-ज्ञान । हेय और उपादेय का विवेचन और विश्लेषण करने पर परिज्ञा का विकास होता है। उपादेय कुछ नहीं है। आत्मा अपने आप में परिपूर्ण है। मूर्छा विजातीय है। उसने चेतना में अपना प्रवेश द्वार बना लिया है। उसे बाहर करो और दरवाजा बंद । श्रेणी (सोपान पंक्ति) विश्रेणी बन जाएगी। उतार चढ़ाव समाप्त । फिर समतल ही समतल । यही सत्य महावीर की वाणी में उद्घाटित हुआ है विस्सेणिं कटु परिण्णाए ज्ञानी मनुष्य समत्व की प्रज्ञा से श्रेणी-मूर्छा की सोपान पंक्ति को छिन्न कर डाले। - - 1 फरवरी, 1995 अध्यात्म साधना केन्द्र नई दिल्ली 30 अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003078
Book TitleApath ka Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size3 MB
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