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अपथ का पथ
चक्षुष्मान् !
वही पहुंच पाता है अपने गंतव्य तक, जिसे पथ मिला है । मंजिल दूर है। इसका तात्पर्य है-पथ दूर है। पथ मिला, फिर मंजिल दूर कहां है ?
जो अपने तक पहुंचाए, वह अपथ का पथ है। उसे खोजना दुर्लभ, पाना ओर अधिक दुर्लभ ।
आदमी चलता है, पशु चलते हैं, वाहन चलते हैं, पथ बन जाता है।
धरती पर पथ बनता है । जल में भी पथ बनता है । जलपोत उसी पर चलते हैं । आकाश में भी पथ बनता है। प्रत्येक वायुयान पथगामी है।
धरती, जल और आकाश में मनुष्य ने पथ खोज लिया है और उसके सहारे लक्ष्य तक पहुंच रहा है।
अपनी खोज धरती, जल और आकाश-तीनों से परे है। इस खोज का शक्तिशाली माध्यम है-मुनित्व ।
मुनि जानता है, मनन करता है। मनन पथ-निर्माण का उपादान बनता है।
ज्ञानी वह है, जो अपने बारे में सोचता है, अपने आपको जानने का यत्न करता है।
इसी सचाई को सामने रखकर महावीर ने कहा-जो मुनि है, उसने पथ देखा है
से हु दिट्ठपहे मुणी।
1 दिसम्बर, 1993 राजलदेसर
अपथ का पथ
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