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मैत्री : वर्तमान के साथ
कि क्रिया चाल हो रही है इधर, और उधर दिमाग दोनों साथ में नहीं चलने चाहिए। भोजन चले तब दिमाग नहीं चलना चाहिए और दिमाग चले तब भोजन नहीं चलना चाहिए । खाते समय केवल खाने का ध्यान रहे और कोई बात सोची ही न जाए। जो केवल खाता है वह वास्तव में खाता है और अच्छा काम करता है । जो केवल खाना नहीं जानता, खाता भी है और दुनिया भर की बात को सोचता भी चला जाता है, वह सबसे पहले अपने स्वास्थ्य के साथ, शरीर-तन्त्र के साथ अन्याय करता है। पाचन बेचारा कैसे होगा ! पाचन तो तब हो जब पाचन-तन्त्र को पूरा रक्त मिले । जब आदमी सोचता है तो रक्त तो दिमाग को मिलेगा, पाचन-तन्त्र को पूरा रक्त मिलेगा नहीं तो पाचन की गड़बड़ी होगी। और यह माना जाता है कि जो आदमी बुद्धिजीवी है, लेखक है, साहित्यकार है, कवि है, ज्यादा सोचता है, उसकी पाचन-प्रणाली दूषित होना एक प्रकार से अनिवार्य बात है । जो आदमी यह जानता है कि कब किस दरवाजे को खोलना है और कब किस दरवाजे को बन्द करना है, वह शांति के साथ जी सकता है । जो सारे दरवाजे एक साथ खोल देता है, संभाल नहीं सकता है तो किसी में से कुत्ता घुस रहा है और किसी में से गधा घुस रहा है । खुले दरवाजे में से तो कभी भी, कोई भी घुस सकता है। मनाही किसको करेंगे ? बीस दरवाजे खोल दिए और अकेला आदमी दरवाजे के सामने बैठ गया तो अन्य दरवाजों में से चोर भी घुस सकते हैं और कोई भी मनाही नहीं हो सकती। वह आदमी सुखी जीवन नहीं जी सकता।
वर्तमान के साथ मैत्री स्थापित वही कर सकता है जो यह जानता है कि कब किस दरवाजे को खोलना है और कब किस दरवाजे को बन्द करना
यह प्रेक्षाध्यान का अभ्यास इस बात का अभ्यास है कि जब चाहें तो चिंतन करें और जब चाहे तब चिंतन का दरवाजा बन्द कर दें। चाहें तब तो प्रवत्ति करें और चाहें तब कायोत्सर्ग कर, दरवाजे को बन्द कर दें। जिस व्यक्ति के हाथ में समाधि और उपेक्षा-ये दोनों सूत्र आ जाते हैं, जो इन दोनों को समझ लेता है कि कब एकाग्र होना है और कब किसकी उपेक्षा करना है, वह वास्तव में वर्तमान के साथ मैत्री स्थापित कर सकता है।
वर्तमान के साथ मैत्री की स्थापना के पांच सूत्र याद करें-स्मृति, प्रीति, वीर्य, समाधि और उपेक्षा । इन पांचों सूत्रों पर मनन करके ही हम वर्तमान का मूल्यांकन कर पाएंगे और तभी वर्तमान हमारा साथ देगा और एक नए जीवन की प्रणाली का विकास होगा।
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