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________________ जीवन की पोथी भड़क बहुत है । इतनी दुकानें हैं कि कहीं पार ही नहीं है । किसी बड़े शहर में चले जाओ ऐसा लगता है कि न आर न पार, बाजार में हजारों-हजारों चीजें। हजारों-हजारों प्रकार । वैराइटी का कोई अन्त ही नहीं है । अब मन का काम रहा कि जिसको देखे उसको मांगे । अब मांग पैदा होगी । अगर उस मांग के साथ चला जाए, बहा जाए तो अशांति और बेचैनी के सिवाय कुछ भी नहीं मिलेगा । तनाव ही तनाव होगा । बहुत महत्त्वपूर्ण सूत्र है उपेक्षा करना । बच्चा साथ में होता है। मांग करता चला जाता है। हर मांग को पूरा करेगा तो बच्चा भी बीमार होगा, पैसा भी लगेगा। हर मांग को पूरा नहीं किया जा सकता, करना भी नहीं चाहिए। किंतु मांग पर नियन्त्रण होना चाहिए, उसकी उपेक्षा होनी चाहिए। हां, आवश्यकता की की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। प्यास लगी है, पानी पिलाओ, भूख लगी है, रोटी खिलाओ । इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। पर अनावश्यक चीजों की तो उपेक्षा की जानी चाहिए। जो उपेक्षा करना नहीं जानता वह समाधि में नहीं जा सकता । समाधि में जो नहीं जा सकता वह उपेक्षा करना नहीं जान सकता। दोनों परस्पर जुड़े हुए हैं। समाधि के लिए उपेक्षा और उपेक्षा के लिए समाधि । यानी जिसमें चंचलता है वह मांगों की उपेक्षा नहीं कर सकता | मांग पर मांग आती जाएगी और उसे पूरा करने का प्रयत्न करेगा । चंचलता एक बहुत बड़ा संकट है जीवन का । चंचलता को रोका भी नहीं जा सकता, किंतु चंचलता जब एक सीमा से परे चली जाती है, एक सीमा पार कर जाती है तो बहुत बड़ा खतरा बन जाती है । ध्यान करना कोरी आध्यात्मिक साधना ही नहीं है । सफल जीवन जीने का सूत्र भी है, शांतिपूर्ण जीवन जीने का सूत्र भी है, जो व्यक्ति चंचलता को अपने जीवन में एक सीमा के बाद नहीं रोक पाता वह सबसे पहले अपने स्वास्थ्य के साथ अन्याय करता है । सीमा से अतिरिक्त चंचलता स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है । दिमाग की अपनी सीमा है । शक्ति की एक सीमा है कि आदमी कितना सोचे । निश्चित सीमा है आदमी कितना बोले, शक्ति की एक सीमा है । शरीर से कितना काम करे शक्ति की एक सीमा है । जो आदमी निरंतर शरीर को चंचल बनाए रखता है, निरन्तर बोलना रहता है, वाणी भी थक जाती है । पर यह दिमाग तो इतना विचित्र है कि कभी थकता ही नहीं । दिन में भी सोचता है और रात को सो जाता है फिर भी सोचता रहता है । नींद में भी मस्तिष्क को आराम नहीं दे पाते । इतनी चंचलता ! यह स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है । उस व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता जो चंचलता की उपेक्षा करना नहीं जनता । आप सोच रहे हैं, और भोजन का समय हो गया है। रोटी खाने बैठे हैं, भोजन परोस दिया गया, सामने थाली है, हाथ उठ रहा है, और कोर तोड़ा जा रहा है, मुंह में जा रहा है । भोजन ४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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