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जागरूकता : जीवन व्यवहार
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स्वाभाविक हो या अस्वाभाविक । देरी से हो या जल्दी हो। मरने के पश्चात् उस व्यक्ति की कथा समाप्त हो जाती है । परन्तु किसी व्यक्ति के चरित्र की हत्या कर दी, यह भयंकर पाप है । जागरूक व्यक्ति इससे बचता है। वह इसमें कभी नहीं फंसता ।
जागरुक जीवन का तीसरा सूत्र है - सत्यनिष्ठा । जब तक सत्यनिष्ठा नहीं जागती तब तक मूर्च्छा नहीं टूटती । आज पदार्थ का विकास बहुत हुआ है और कल्पना की जा रही है कि इक्कीसवीं सदी में इतना विकास हो जाएगा कि आदमी को कुछ भी नहीं करना पड़ेगा, यन्त्र हो सब कुछ कर डालेगा । वह पूर्णतः मशीनी युग होगा । किन्तु इतना हो जाने पर भी यदि आदमी नहीं बदला, दूसरों को बदलने वाला नहीं बदला तो एक दिन ऐसा आ सकता है कि आदमी चाहेंगे 'जैसे थे वैसे बने रहें ।'
क्या इस स्थिति से निपटा जा सकता है ? यदि आदमी नहीं बदला तो यह स्थिति और अधिक भयकर हो सकती है । इसलिए आवश्यक है कि आदमी में सत्यनिष्ठा का विकास हो ।
सामाजिक परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण सूत्र है - करुणा । आदमी आदमी को ही नहीं, किसी प्राणी को न सताए । कुछेक व्यक्ति प्रश्न करते हैं कि आज इनने डाक्टर हैं, इतने अस्पताल हैं, चिकित्सा के इतने विकसित साधन हैं, फिर भी बीमारियां क्यों बढ़ती हैं ? जब गहरे में उतरकर देखते हैं तो पता लगता है कि आज की चिकित्सा पद्धति के पीछे भी बड़ी क्रूरता है । एक आदमी की बीमारी की चिकित्सा की खोज के लिए हजारों-हजारों मेंढ़क और बन्दर मारे जाते हैं, सताए जाते हैं, काटे जाते हैं। इस हत्या का एक मात्र उद्देश्य है कि आदसी नीरोग रहे बीमार न बने। इस स्वास्थ्य की पृष्ठभूमि में इतनी क्रूरता है तो भला बीमारियां क्यों नहीं बढ़ेंगी ? इस क्रूरता की परिणति है बीमारी ।
आज हिन्दुस्तान से राजतंत्र समाप्त हो गया। कितने राजा थे, शासक थे, सब समाप्त हो गए। एक दिन में न कोई बनता है और न कोई समाप्त होता है । बनने-बिगड़ने में समय लगता है । राजाओं की समाप्ति में क्रूरता का हाथ रहा है। एक-एक राजा ने अपनी वासना तृप्ति के लिए क्या-क्या नहीं किया ? काम की उत्तेजना के लिए एक-एक औषधि के निर्माण में लाखों-लाखों चिड़ियों की जीभें काम में ली गईं। कितनी क्रूरता ! आज तक का इतिहास बताता हैं कि जहां-जहां क्रूरता बरती गई है, उस समाज या व्यक्ति का दो-चार शताब्दियों में अवश्य ही पतन हुआ है । जिस समाज में सहयोग और करुणा का स्रोत सूख जाता है, वह अपने अस्तित्व को गंवा देता है ।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि जागरूक वह होता है
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