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जागरूकता : जीवन व्यवहार
जीवन का एक क्रम है सोना और जागना। आदमी एक स्तर पर जागता है । जब चेतन मन जाग जाता है तब हम कह देते हैं कि आदमी जाग गया । चेतन मन सोता है तो हम कह देते हैं कि आदमी सो गया। किन्तु जिन लोगों ने गहरे में उतर कर देखा तो लगा कि चेतन मन जागा हुआ है और आदमी सोया हुआ है, चेतन मन सोया हुआ है और आदमी जागा हुआ है।
राजसमंद । तुलसी साधना शिखर । ध्यान गुफा-चित्-प्रेक्षा । अमेरिकन युवक रोबर्ट । वह प्रतिदिन वहीं सोता था । एक दिन वह बोला--- मैं गुफा में सो रहा था। मैंने देखा, मेरा एक शरीर सो रहा है और मैं उसे देख रहा हूं। एक शरीर नींद ले रहा है और दूसरा जाग रहा है। एक स्वप्न देख रहा है, दूसरा स्वप्न देखने वाले को देख रहा है।
दो स्तर हैं । एक है चेतन मन का स्तर और दूसरा है अचेतन मन का स्तर । एक है चेतन मन के स्तर पर सोना-जागना और दूसरा है अचेतन मन के स्तर पर सोना-जागना । हम सोने और जागने की बात को स्थूल रूप में समझते हैं कि आदमी रात में सो गया और दिन उगते ही जाग गया । कहां सोया, कहां जागा ? जब तब स्वभाव का परिवर्तन नहीं होता, तब तक आदमी जागता नहीं, महावीर का महत्त्वपूर्ण वचन है - 'सत्ता अमुणी सया, मुणिणो सया जागरंति' जो अमुनि है, अज्ञानी है, वह सदा सोया हुआ है । जो मुनि है, ज्ञानी है, सदा जागता है। अमुनि जागता हुआ भी सोता है और मुनि सोया हुआ भी जागता है । गीता में भी यही कहा कुछ ऐसे हैं जो सोते हुए भी जागते हैं और कुछ ऐसे हैं जो जागते हुए भी सोते हैं । संयमी सोता हुआ भी जागता है और असंयमी जागता हुआ भी सोता है । हमें अध्यात्म के संदर्भ में सोने और जागने की भाषा को समझना चाहिए। जो व्यक्ति भीतर में जाग जाता है वह जाग गया, चाहे फिर वह अवस्था में छोटा ही क्यों न हो। जो व्यक्ति भीतर में जागा हुआ नहीं है, वह चाहे पचास वर्ष की आयु भी पार कर गया, फिर भी वह सोया हुआ ही है।
आज के आनुवंशिकी वैज्ञानिक बतलाते हैं कि व्यक्ति के स्वभाव का निर्माण भीतर में होता है, जीवन के साथ होता है। कल ही एक लेख पढ़ा था-'काम और परमाणु युद्ध' है उसमें प्रसंगवश चर्चा थी कि आदमी का स्वभाव हारमोन्स के द्वारा निर्धारित होता है और वह पहले ही सम्पन्न हो
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