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जीवन की पोथी
मकान कैसा लगा ? सन्यासी ने सेठ के अहंभाव को पढ़ लिया । मुस्कराते
पर इसमें एक कमी रह गई क्या कमी है ? सन्यासी ने सेठ ने सुना । उसका
हुए सन्यासी बोला- सेठजी ! मकान सुन्दर है, है । यह सुनते ही सेठ चौंका। पूछा, महाराज ! कहा - एक दिन यह मिट जाएगा, नष्ट हो जाएगा। सारा अहंकार विलीन हो गया । दृष्टि बदल गई । महल में रहने वाला अहंकार से भरा है । झोपड़ी में रहने वाला हीनभावना से पूर्ण है । महलवाला झोपड़ीवाले को हीनभावना से देखता है । पर जो द्रष्टा होता है उसके मन में महल के प्रति न अहंभाव होगा और न झोंपड़ी के प्रति हीनभावना होगी। क्योंकि वह जानता है— एक दिन महल भी ढह जाएगा, एक दिन झोपड़ी भी ढह जाएगी ।
संतुलन तब आता है जब आदमी देखना सीख जाता है, अहंकार और ता से मुक्त होता है । हीनता और अहंकार ये दोनों असंतुलन पैदा करते हैं । ये मिटते हैं तब संतुलन आता है ।
जागरूकता का अर्थ है – संतुलन और संतुलन का सूत्र है देखना, सीखना, देखने का अभ्यास करना ।
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