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________________ १८२ जीवन की पोथी मकान कैसा लगा ? सन्यासी ने सेठ के अहंभाव को पढ़ लिया । मुस्कराते पर इसमें एक कमी रह गई क्या कमी है ? सन्यासी ने सेठ ने सुना । उसका हुए सन्यासी बोला- सेठजी ! मकान सुन्दर है, है । यह सुनते ही सेठ चौंका। पूछा, महाराज ! कहा - एक दिन यह मिट जाएगा, नष्ट हो जाएगा। सारा अहंकार विलीन हो गया । दृष्टि बदल गई । महल में रहने वाला अहंकार से भरा है । झोपड़ी में रहने वाला हीनभावना से पूर्ण है । महलवाला झोपड़ीवाले को हीनभावना से देखता है । पर जो द्रष्टा होता है उसके मन में महल के प्रति न अहंभाव होगा और न झोंपड़ी के प्रति हीनभावना होगी। क्योंकि वह जानता है— एक दिन महल भी ढह जाएगा, एक दिन झोपड़ी भी ढह जाएगी । संतुलन तब आता है जब आदमी देखना सीख जाता है, अहंकार और ता से मुक्त होता है । हीनता और अहंकार ये दोनों असंतुलन पैदा करते हैं । ये मिटते हैं तब संतुलन आता है । जागरूकता का अर्थ है – संतुलन और संतुलन का सूत्र है देखना, सीखना, देखने का अभ्यास करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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