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________________ जागरूकता १६५ मानना चाहिए। आवश्यकता पूरी हुई और समाप्त । दिन में अधिक सोना बीमारियों को निमंत्रण देना है। आयुर्वेद में दिवस-शयन का सर्वथा निषेध है। यदि शरीर की थकावट को मिटाने के लिए सोना आवश्यक हो तो आधा घंटाभर विश्राम किया जा सकता है। अधिक नहीं । निद्रा मूर्छा है । मूर्छा में जाना अच्छा नहीं होता। जागरण का विघ्न है निद्रा। विकथा भी मूर्छा का ही एक रूप है। इसमें समय का बहुत अपव्यय होता है । जो व्यक्ति समय न मिलने की शिकायत करते हैं, उनका भी अधिक समय विकथा में बीतता है। जब राजनीति और राजकथा का प्रसंग चल पड़ता है तो समय का ध्यान ही नहीं रहता। फिर आलोचनाएं-प्रत्यालोचनाएं चलती हैं और सारा समय उसी में बीत जाता है। असफलता का एक सूत्र है-दूसरों के विषय में अधिक सोचना और सफलता का सूत्र है अपने विषय में अधिक सोचना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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