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जीवन की पोथी
है ? मैं तुम्हें छोड़ नहीं सकती। जहां तुम रहोगे, वहीं मैं रहूंगी।' उस व्यक्ति ने सोचा, परदेश जाना बेकार है । वहां भी दरिद्रता मेरा पीछा नहीं छोड़ेगी। अच्छा है कि मैं यहीं रहूं।
जो व्यक्ति मूर्छा में जीता है, असफलता उसका पीछा नहीं छोड़ती। जीवन में सफल वे लोग हुए हैं, जिनके साथ मूर्छा जुड़ी हुई नहीं थी। मूच्छित व्यक्ति स्थिति का सही आकलन नहीं कर पाता और वह पग-पग पर असफल रहता है। उसके विवेक और बुद्धि पर ऐसा आवरण आ जाता है कि वह सही निर्णय नहीं कर पाता । उसकी विवेक-ज्योति राख से ढक जाती
जीवन की सफलता का सूत्र है-जागरूकता और असफलता का सूत्र है--- मूर्छा ।
भगवान महावीर ने दो गाथाओं में मूर्छा और जागरूकता का बहुत सुन्दर चित्रण किया है -
जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियट्टई । अहम्मं कुणमाणस्स अफला जति राइओ !। जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनिय?ई ।
धम्म व कुणमाणस्य सफला जंति राइओ। रातें निरन्तर बीतती चली जा रही हैं। जो बीत गई सो बात गई । वह लौटकर नहीं आती । पंछी कहीं जाता है तो रात को लौटकर अपने नीड में आ जाता है । एक काल ही ऐसा है जो लौटकर नहीं आता । अतीत कभी वर्तमान नहीं बनता। जो व्यक्ति अधर्म करता है, उसकी रातें निष्फल जाती हैं । जो व्यक्ति धर्म करता है उसकी रातें सफल जाती हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि अधर्म करने वाले की रातें लौटकर नहीं आती तो क्या धर्म करने वाले की रातें लौट कर आती हैं ? काल कभी नहीं लौटता । अन्तर इतना आता है कि अधर्म करने वाले का क्षण व्यर्थ चला जाता है और धर्म करने वाले का क्षण सार्थक जाता है । अन्तर आता है व्यर्थता और सार्थकता का।
प्रश्न होता है कि धर्म क्या है । एक शब्द में कहा जा सकता है, धर्म है अप्रमाद, जागरूकता और अधर्म है प्रमाद, मूर्छा । जागना धर्म है और मूच्छित रहना अधर्म है।
जीवन का सबसे बड़ा धर्म है-जागरूकता । जो आदमी जागरूक नहीं होता, वह साधना का स्पर्श तक नहीं कर सकता। मूर्छा के अनेक रूप हैं ---- विकथा, विषय की आसक्ति, राग, प्रिय-अप्रिय का संवेदन । नींद भी मूर्छा है । नींद आवश्यक है स्वास्थ्य के लिए। पर इसका विवेक आवश्यक है। नींद लेना एक बात है और नींद को बहमान देना दूसरी बात है। नींद को कभी बहुमान नहीं देना चाहिए । उसे केवल आवश्यकतापूर्ति का साधन मात्र
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