SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नए मस्तिष्क का निर्माण आज प्रत्येक व्यक्ति यह चाह रहा है कि नए विश्व का निर्माण हो । पुराना विश्व उसे अच्छा नहीं लग रहा है। जिस समाज में वह जी रहा है वह समाज उसे सुखद नहीं लग रहा है । उसके मन में समाज के नए निर्माण की कल्पना बार-बार उभर रही है। किन्तु नए विश्व और नए समाज का निर्माण तभी संभव है जब नए मस्तिष्क का निर्माण हो । अभी जो मस्तिष्क काम कर रहा है, उसके रहते हुए नए विश्व और नए समाज के निर्माण की कल्पना नहीं की जा सकती। मनोविज्ञान की भाषा में हमारा मस्तिष्क कण्डीशन्ड माइन्ड है, प्रतिबद्ध मस्तिष्क है। वह कुछ बनी-बनाई मान्यताओं और धारणाओं के आधार पर चल रहा है। जब तक मान्यताओं और धारणाओं की प्रतिबद्धता को नहीं तोड़ दिया जाता, तब तक नए समाज के निर्माण की कल्पना नहीं की जा सकती। जब जीवन की दूसरी अवस्था आती है तब मस्तिष्क का पूर्ण विकास हो जाता है। दूसरी अवस्था का कालमान ११-२० वर्ष तक को अवस्था है । पन्द्रह वर्ष की अवस्था तक मस्तिष्क का पूर्ण विकास हो जाता है । पन्द्रह वर्ष की अवस्था के पश्चात् व्यक्तित्व का विकास तो हो सकता है, पर मस्तिष्क का विकास नहीं हो सकता। मस्तिष्क-विज्ञानी इस सचाई को स्वीकार करते हैं कि मस्तिष्क के बदलने की अवस्था है पन्द्रह वर्ष की। उसके बाद उसको बदलना कठिन हो जाता है । इसलिए जीवन की दूसरी अवस्था, जो ११ से २० वर्ष की होती है, बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस अवस्था में कामवृत्ति कम जागत होती है, कुछ नियंत्रण रहता है। पिनियल ग्रन्थि सक्रिय होने के कारण यौन हारमोन्स तथा अन्यान्य हारमोन्स पर कण्ट्रोल बना रहता है। जैसे ही पिनियल ग्रंथि निष्क्रिय होने लगती है, यह कामवृत्ति उभरती है। मस्तिष्क को बदलने की अवस्था है पन्द्रह वर्ष तक की। बाद में वह असंभव होता है। आज अनेक क्रांतियों की आवश्यकता है। उनमें सद्यस्क आवश्यकता है मनोवैज्ञानिक क्रांति की । मनोवैज्ञानिक क्रांति का अर्थ होगा नए मस्तिष्क का निर्माण, मस्तिष्क का परिवर्तन । मस्तिष्क का एक हिस्सा है एनिमल ब्रेन। यह आज बहुत सक्रिय है। यह पशु-मस्तिष्क है । इसे आदि मस्तिष्क भी कहा जाता है । जैन दृष्टि के अनुसार जीवों का मूल स्रोत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy